गजेन्द्र व्याख्यान माला | Gajendra Vyakhyan Mala

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Gajendra Vyakhyan Mala  by हस्तीमल जी महाराज - Hastimal Ji Maharaj

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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६ | [ गजेन्द्र व्याख्यान माला निर्माण नही कर रहे है। आप पर पर तो बैठे है जैन के--जैन के पद पर वेठनेवाले को, अपने विकारों को, मानसिक दुर्बलताओ को जीतने का यत्न करता चाहिये। क्योकि काम, क्रोध, मद, लोभ और राग, हेष को जीते वही जन होता है। जैसा कि कहा है--एकप्पा पजिहसत्तू कसायाइदियाणिअ, ते जिणित्त, जहानाय, विहरामि जहासुह । दोष मुक्त होने से वह सदा सर्वत्र निर्भय रहता है । परन्तु जिस व्यक्ति को उल्टे क्रोच और काम आदि जीतले, बह क्‍या कहलायेगा ? हम आज अपने भक्तो को इस रूप में देखते है कि क्रोव ने उनको जीत लिया, लोभ ने जीत लिया है| चतुर्मास के इस धर्मकाल मे कुछ बहने तपस्या कर रही है, परन्तु उनमे भी ऐसी बहुत थोडी बहिने होगी जो लालच के प्रसग आने पर उससे मुख मोड ले, उसे जीत ले । भोजन से मुख मोडने- वाली बहन से तपस्या के प्रसंग मे बन्धुजनों से मिलनेवाली भेंट से मुह मोडने को कहा जाय तो थोडी ही बहिने होगी जो भेट को स्वीकार न करे । वे अपने सगे सम्बन्धियो के आने के प्रसग से पौषधघ के लाभ को छोड सकती है, परन्तु धन के लाभ को नही । वे पौषध की महिमा को स्वीकार तो करती हैं, किन्तु लाभवाले दिन में नहीं । कारण उन्होने अन्तरग दोषो पर विजय नही पायी । मेरा मन चाहता है कि आज यहाँ कुछ ऐसी नमूनेदार बाई मिले जो धर्म के इस प्रसग मे भेट देनेवाले भाई को साफ-साफ कहे कि इस समय मुझको कुछ नही चाहिये | मैं तो हमेशा आपसे लेती रहूगी और आप देते रहेगे। परन्तु इस समय हमने तप किया है । इस समय कुछ भी लेना लोभ के आगे, लालच के आगे, अपनी हार और हँसाई मानने जैसी वात होगी । ऐसी साफ-साफ बोलनेवाली तपस्विनो को धन्यवाद है । लोक व्यवहार मे कभी ऐसा भी मौका आता है कि व्याही लोगो के यहाँ जाकर भी आप नही खाते है । घर मे शोक आदि होने से भी आप अपने समे-प्तम्वन्दी के यहां खाने से इन्कार कर देते हैं ।




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