ज़िंदगी की राह | Zindagi Ki Raha Par

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Zindagi Ki Raha Par by बालशौरि रेड्डी - Balshori Reddy

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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जिन्दगी की राह सुहासिनी ने रोते हुए सारा वृत्तान्त कह सुनाया। यह सुनकर मानो डाक्टर पर विजली गिर गई । उाक्टर सुहासिनी को धीरज वंवा ही रहेये किपोरिकोमें कार का हॉर्न सुनाई दिया। सरला टेनिस-रैकेट हाथ में घुमाते हुए गुनगुनाती हुई हाल में पहुंची । बूढ़ा नायर सामने श्राया । वह कुछ कहना चाहता था लेकिन कुछ कह न पाया। उसके दिल के भीतर से दुःख का प्रवाह उमड़ पड़ा वह्‌ फफक-फफक- बार रोने लगा । “दादा, यह तुम्हें कया हो गया ?” सरला पूछ बंठी। इतने में वगल के कमरे में अपनी वहन बुहासिनी का रुदन सुनाई पड़ा । एक छलांग में सरला वहां पहुंची। सुहासिनी ने उछलकर सरला को गले से लगाया और जोर से चिल्ला उठी--- “बवहन--- श्रौर फूट-फूटकर रोने लगी। सुहासिनी के शोक का पारावार न रहा। रोते-रोते उसने सारी कहानी कह डाली। दोनों बहनें कव तक रोती-कलपती रहीं, कहा नहीं जा सकता। डाक्टर ने वहत कुदं समाया । लेकिन वे रोती ही रहीं ।




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