अभिधम्मत्थसंगहो भाग 1 | Abhidhamthsngaho Bhag 1

55/10 Ratings. 1 Review(s) अपना Review जोड़ें |
Book Image : अभिधम्मत्थसंगहो  भाग 1  - Abhidhamthsngaho Bhag 1

लेखक के बारे में अधिक जानकारी :

No Information available about रामशंकर त्रिपाठी - Ramshankar Tripathi

Add Infomation AboutRamshankar Tripathi

पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

(Click to expand)
ग्रन्थ आचाये १. ज्ञानप्रस्थान शास्त्र आयं कात्यायन २. प्रकरणपाद स्थविर वसुमित्र ३. विज्ञानकायपाद स्थविर देवशर्मा ४, धर्मस्कन्यपाद आयं लारिपूत्र ४. प्रश्नप्तिशास्त्रयाद आयं मौद्‌ गल्यायन ६. धातुकायपाद पूर्ण (या वसुमित्र) ७. संगीतिपर्यायपाद महाकौष्ठिल्ल पालि अभिवर्भपिटक के साथ इनकी तुलना करने से नामों मे पर्याप्त साम्य परिलक्षित हाता रै, यथा ~ पालि अभिवर्भ पिटक सर्वास्तिवादी अभिधमेषिटक १. धम्मसंगणि ४. धरमेस्कन्धपाद २. विभद्धः ३. विज्ञानकायपाद ३. पूग्गलपञ्जत्ति ५. प्रज्ञप्तिपाद ४. घातुकथा ६. धातुकायपाद ५. पद्ठान १. ज्ञानप्रस्थान ६. यमक ७. सद्धतिपर्यायपाद ७. कयावत्यूसकरण २. प्रकरणपाद নানী में पर्याप्त समानता होने पर भी विषयगत साम्य विलकुल नहीं है । दोनों सम्प्रदायों के अभिवर्धपिटक अपने अपने सृत्रपिटक के ऊपर अवलम्बित हैं और दोनों के सूत्रपिदकों में अधिक वैषम्य नदीं है, अतः सामान्यतः कुछ साम्य तौ अवद्य है; किन्‍्तू एक सम्प्रदाय के एक ग्रन्य की दूपरे सम्प्रदाय के जिस प्रन्‍्य से দাস समानता है, उन ग्रन्थों के वियय अवश्य समान नहीं हैं । पालि अभिधरम्म॑पिटक का संक्षिप्त परिचय पम्मसडूर्णण - बहू अभिवंभपिट्क का मूलअन्य माता जा सकता है । इसमें समस्त धर्मों को कुशल, अकुशन और अव्याकृत में विभाजित करके उनकी व्याख्या मी गई हैं। इसे बौद्ध नीतिवाद की भनोवैजश्ञानिक व्यास्या कह सकते हैं । इसमें सम्पूर्ण धर्मों का १२२ भातिकाओं मे विभाजन किया गया है । इनमे २२ धिक मातृका तवा १०० द्विक मत्रिकाये ह) समस्त ग्रस्य ४ भाग में विभक्त दै, यया - वि्तकाण्ड, स्पकाण्ड, नितयैपकाण्ड मौर अत्युद्धारकाण्ड । শিবা में चित्त का कामावचर, हपावचर, अकहूपाववर ओर लोकोत्तर ~ इसे चार भागों में विभाग किया गया है । कामावचर चित्त कुशल, अकुशल, विपाक लौर क्रिया -इन चार भागों में विभकत हूँ । इनमें कुशल चित्त ८, अपा १२ = ध १४ ङ्कुयल विवाकः ७ तथा क्रिपाचित्त ११ हैं । रूपायचर चित्तो कं + पवाक ५ नया कियाचित्त ५ ह । जह्परावचर्‌ चित्तो मे कुदाल ८, विपाकः




User Reviews

No Reviews | Add Yours...

Only Logged in Users Can Post Reviews, Login Now