जपसूत्रम भाग 1 | Japsutram Bhag - I
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
8 MB
कुल पष्ठ :
288
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)जपसूत्रम् की आत्मकथा ५५.
कर्म इत्यादि एक-एक मृ भाव किस प्रकार अपने विचित्र विकास और परि-
णति तक पहुँचा हैं-इसके तथ्य एवं तत्त्व का विश्लेषण-समन्वय करते हुए
कुछ खण्डों में इतिहास लिखने की वासना हुई । किन्तु भूमिका-ग्रन्थ “इतिहास
ओ अभिव्यक्ति” प्रकाशित होने के वाद सृप्टि, ब्रह्म इत्यादि के सम्बन्ध में
अन्यान्य सुविस्तुत लेख कुछ दूर तक प्रस्तुत हो कर भी प्रकाश्य आलोक के
मुख-निरीक्षण का भाग्य नहीं पा सके ।
उसके वाद संन्यास-जीवन में सभी कुछ का आमूल पट-परिवत्तन टौ
गया । तरुण एवं परिणत वयस् का वह विद्या-रस अपने को व्यान-रस और
भाव-रस में खो वेठा । ग्रन्यादि-पाठ और अनुशीलन की बह प्रवृत्ति जसे
ही एक ओर निःशेप हुई, वसे ही दूसरी ओर चाक्ष॒प दृष्टि का भी ह्वास हुआ |
यही हुई संस्कृत में 'जपसूचम्' की आवार-प्रस्तुति। जपसूत्रम् नाना शास्म्रों
के अधीत-विद्य पगण्डित का विरचित ग्रन्थ नहीं हे, श्रद्धालु अनुग॒हीत का
अनुध्यात ग्रन्य है। बाहर से निवृत्त दृष्टिमति आन्तर अध्यात्म-संवाद म,
ही निविष्ट हो गई हूँ, यद्यपि व्याख्या में विज्ञानादि वहिविद्या के साथ प्रसद्भूत:
समझना-वूझना पड़ा हैं ।
जपसूत्रम् परमात्मा की इच्छा से शेप हो चला हूँ। ग्रन्य ६ खण्डों में विशाल
भी है अवश्य । किन्तु और भी सुविज्ञाल नहीं हो सका, इसलिए इसमें भी
95761896010 ए]110850077 का स्वप्नः पूर्णाद्धः मूत्ति में वास्तव नहीं हो
मक्ता! सूत्र एवं कारिकावली में उस विराट समन्वय का दिग्दर्यन-सूत्र
सम्भवतः मिल गया, किन्तु अनवगाहित महारहस्थवारिधि इस के पुरोभाग में
रह गया । ग्रन्थ की व्याख्या में वेद-तन्त्र-पुराणादि के तत्व और चर्या
(1९07५ शाते [99०६10०७) दोनों के वियय में अनन्त अगाघ रहस्य का
कितना-सा अंग यहां खोल कर देसा जा सका हैं ! प्रसद्भतः सूत्र के प्रयोग
एवं दुष्टान्त দলুন में यत्किड्न्चित् दी हुआ हैँ । बह জ্বাল বী 010৮10-
{112 (वरिन्ववेपात्मक) ह । भावी विधाता यधासमय उस काम को अपने
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