नींव का पत्थर | Nimv Ka Patthar

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Nimv Ka Patthar   by पं. रतनचन्द भारिल्ल - Pt. Ratanchand Bharill

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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सबे दिन जात न एक समान जीवराज और समता ने अपनी दोनों सन्तानों को प्रारंभ से ही ऐसे सदाचार के संस्कार दिए ताकि वे सन्मार्ग से न भटक सर्के। जीवराज अपने जीवन के पूर्वाद्ध में जब स्वयं सही रास्ते से भटक गये थे और मोहनी से उनके जो संतानें हुईं घे सब उनकी ही लापरवाही से सन्मार्ग से भटके थे। अतः उन्होंने सोचा अब तो प्रत्येक - नया कदम सोच-समझ कर ही उठाना होगा। और उन्होंने ऐसा ही किया। यह तो बहुत अच्छा हुआ जो उन्होंने अपने शेष जीवन को सात्विकता से जिया परन्तु वे अभी भी अतीन्द्रिय आनन्द की अनुभूति करने से वंचित ही हैं क्योंकि अब तक उन्हें उस अतीन्द्रिय आत्मिक आनन्द पाने के लिए जिस अन्तर्मुखी उपयोग की आवश्यकता होती है वह उपयोग जिन कारणों या साधर्नों से अन्तर्मुखी होता है वे साधन उनके पास नहीं हैं। अन्तर्मुखी उपयोग करने का एकमात्र उपाय वस्तु स्वातंत्र्य की यथार्थ समझ और श्रद्धा ही है क्योंकि वस्तु स्वातंत्रय के ज्ञान-श्रद्धान बिना अन्य के भले-बुरे करने का भाव निरन्तर बना रहता है। हम अनादिकाल से अपनी मिथ्या मान्यता के कारण ऐसा मानते आ रहे हैं कि मैं दूसरों का भला-बुरा कर सकता हूँ दूसरे भी मेरा भला- बुरा कर सकते हैं। इसकारण हम निरन्तर दूसरों का भला या बुरा करने तथा दूसरे हमारा बुरा न कर दें इस चिन्ता में आकुल-व्याकुल बने रहते हैं। और इनके कर्तृत्व के भार से निर्भार नहीं हो पाते। जब हम वस्तु-स्वातंत्र्य के सिद्धान्त के माध्यम से यह समझ लें कि न केवल प्रत्येक प्राणी बल्कि के प्रत्येक परमाणु का परिणमन भी स्वाधीन है किसी भी जीव के सुख -दुःख का कर्त्ता - हर््ता कोई अन्य नहीं है क्योंकि प्रत्येक वस्तु स्वतंत्र है स्वाधीन है स्वसंचालित है। तब हम इस कर्तृत्व के भार से निर्भार हो सकेंगे।




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