अभिनव प्राकृत-व्याकरण | Abhinav Prakrat-Vyakaran

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Abhinav Prakrat-Vyakaran by डॉ नेमिचंद्र शास्त्री - Dr. Nemichandra Shastri

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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श्रध्वावता आषा-प्रिशाल के लिए व्याकरण ज्ञान की नितान्त आवश्यकता है । जब किसी भी मापा के बाइमव की विशारु राशि संच्ति हो जाती है, तो उसकी विधिवत व्यवस्था ॐ दिष्‌ व्याकरण अस्थ डिखे जाते हैं । प्राह्ृत के जन्भाषा होने से भारम्भ में इसका कोई व्याकरण नहीं छिखा गया। वर्तमान में प्राहृत भाषा के अनुशासन सम्बन्धी जितने व्याकरण ग्रन्थ उपछष्ध है, थे तभी संस्कृत सापा में छिल्ले गये है । आश्चर्य यह है कि जन पालि सापा का व्याकरण पाछि में लिखा हुआ उपछब्ध है, तथ प्राकृत भाषा का व्याकरण प्राइत में ही लिखा हुआ क्यों नहीं उपलण्ध है ? सर्धमागधी के आग्रमिक प्रन्‍्थों में शब्शनुशासव सम्बस्धी जितनी सामग्री पायी जाती है, उससे यदं सञुमान रगाना सद है कि प्रात भाषा का व्याकरण प्राह्ृत में लिखा हुआ अवश्य था, पर आज़ वह काछकबलित हो चुका है। यहाँ उपरब्ध फुटकर सामग्री पर विचार करना आवश्यक है । प्राक्त भाषा तें रात व्याकरण के सिद्धान्त कायारांग में ( द्वि० ७, १ ० ३१९ ) तीत वचन-लिंग-काए-पुरुप का विवेचन किया गया है। ठाणांग ( अष्टस ) में आठ कारकों का निरूपण पांश जाता है। इन सारी बातों के अतिरिक्त अनेक नये तथ्य अजुग्रोगद्वार सूत्र में विस्तारपूर्वक बर्णित हैं । दस मन्थ मे समस्त शब्दराशि को निम्त पाँच भागों में विभक्त किया है।' १--नामिक--सुबस्तों का अहण सास में किया है। जितने भी प्रकार के संज्ञा शब्द दै वे नामिक के द्वारा अभिहित किये गये दै । यथा अस्सो, अस्ते ८4 अश्वः आदि । २--नैपातिक--अव्ययों को निष्ातय से सिद्धू माना है। अतः अव्यय तथा अच्ययों के ससाच विपातव से सिद्ध अल्य देशी शब्द नेपातिक कहे गये हैं | यथा--- खल, भकेतो, जह, जहम आदि । ३--आख्यातिक--धातु से रिप्पन्न क्रियारूपों की गणना आख्यातिक में दी है। बथा-- धावइ, गउछ३ आदि । ५ ४--औपसर्गिक--उपसगो के संग्रोग से निष्पन्न शब्दों को औपसमिक হা गया है। यथा--परि, णु, भव आदि उपस्गो के संयोग से निष्यन् अणुभवह प्रस्ति पद्‌ १-- पचणाभे पचविहे परणतते, ते जहा--(१) नामिकं, (२) नैपातिक, . (২) भ्राद्पातिकं, (४) शरोपसगिके, (भ) मिघम्‌ 1 “अगुओगदार सुत्तं १२५ सूत्र




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