अशोक | Ashok
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
3 MB
कुल पष्ठ :
140
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)বৃহন | पहला श्रंक । [ ७
[ श्रशोक सिर भुकाकर कुछ सोचने लगता है । গজ নি-
मित्रा उसको श्रोर देखती है । कुछ देर निस्तव्धता ।]
अशोक : (सिर उठाते हुए) पर एक वात जानती हो, प्रिये ?
असंधिमिन्ना : क्या ?
श्रश्ोक : मुझे कई वार संस्कृत की एक उक््ति स्मरण हो श्रातों
है ।
श्रसंधिरमित्रा : कौनसी ?
अशोक : वीरः भोग्या वसुन्धरा ।
श्रसंधिमिना : (कुछ श्राइचर्य से) तो क्या मौर्यवश मे गृह
कलह होगा, प्रिय !
प्रशोक : सुसीम के सहश पुरुपार्थहीन, श्रकरमण्य, नपु सक व्यक्ति
के हाथ में भारतीय साम्राज्य की सत्ता जाने ग्रीर उसके
विध्वंस, नष्ट-अ्रष्ट होने की अपेक्षा मोर्यवंश का गृह-कलह
कदाचित् कहीं अधिक कल्याणकारी होगा *
[ प्रतिहारी का प्रवेश । प्रतिहारी वृद व्यक्ति है; लम्बी
म्छे भ्रौर इवेत दाढ़ी है। ऊपर के अंग में एक लम्बा कंचुक
पहने है श्रौर दोचे के प्रंग में अधोवस्त्र । सिर पर पगणड़ो है।
अंगों में स्वर्ण के भूषण हैं । उसके हाथ में एक लम्बे पोंगले
में राजपत्र हें। वह श्राक्र भुककर घ्रभिदादन फरता है तवा
पत्र श्रशोक फो देता है । |
अतिहारी : मगध से राजराजैश्वर का वह पत्र लेकर एक
परदवा रोही श्राया है श्रीमान् ¦
[ श्र्लोक पोगला पतो सोलकर पत्र पट्ता हं 1 श्रतंधिमित्रा
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