गोविन्ददास ग्रन्थावली तीसरा खण्ड | Govindadas Granthavali Khand-3

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Book Image : गोविन्ददास ग्रन्थावली तीसरा खण्ड  - Govindadas Granthavali Khand-3

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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दूसरा दृश्य स्थान : शुरसेत के मकान में मोहन का कमरा समय : सश्व्या [कमरा देहात के जमीदारों के बड़े-बड़े मकानों के सदृश रंगा हुआ है । सोहन श्रौर बलदेव का प्रवेश । मोहन लगभग वाईस वर्ष का गोरा, ऊँचा, भरे हुए मुख श्रौर शरीर का श्रत्यन्त सुन्दर युवक है। ढीली बॉह का कुरता और धोती पहने, नंगे सिर है। बाल बड़े-बड़े हैं। छोटी-छोटी मुंछें हें। बलदेव लगभग बीस व्षे का गेहुंए रंग का कुछ सोटा और ल्गिना साधारणर्तया सुन्दर युवक है। कपड़े मोहन के सदृश हैं, पर सिर पर दोपलिया टोपी है। टोपी के चारों ओर बड़े-बड़े बाल लहरा रहे है १ रेख निकल रही है। | मोहन : बाल्यावस्था का पुरा ध्यान तो नहीं है, बलदेव, फिर भी, उस समय ऐसी दशा न थी। संसार के प्रत्येक पदार्थ में एक प्रकार का सौन्दर्य दृष्टिगोचर होता था। हर वस्तु में स्वाभाविक प्रेम का अनुभव होता था 1 मुझे ही क्यों, तुम्हारी और कालिन्दी की भी तो यही दशा थी। तुम्हीं कहो, वह कैसा महान्‌ सुख था।




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