समस्या का अंत | Samasya Ka Anat

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Book Image : समस्या का अंत  - Samasya Ka Anat

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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समस्या का अन्त नहीं है । दिन तो इसने सुक्ते व्यर्थ हो टौदाया । सिन्तु शव यह सेरा श्राज्नाकारी हो गया हैं । रखो तनिक इसके सिर पर ठाथ फेरो कितना नुन्दर है यद तुम्टारे हृदय मे घाव कस हम गया भला । किसी योर सिद से युद्ध किया था कया ? एक सिदनी से युद्ध करना पड़ा । सासचिका-- मोलेगन से सिहनी से ? सिह की सिदनी से युद्ध करना कठिन है । किस स्थान पर तुमने युद्ध किया था ? यहाँ चामरधों के वन में ्घवा सद्रक वन से । भरुतवुद्धि--नामरथ वन में ? माणविका--वामरथ वन से ? कहो ? श्रुतवुद्धि--लस्वी कथा है माणविका ठुम न समक सकोगी । 2 माणविक्रा--यदठि ठुम ससमाश्रोगे तो क्यों न समक सके गी । यह हृदय में घाव केंसे हो गया है ? तुम्हे मालूम दे मेरे परिचार को संदेह दो गया है । पहले मे के लिए रात्रि-भर नहीं रहती थी श्रव मेने तुमसे सिलने के लिए रात्रि-भर क्षेत्ररक्षा का भार लिया इु। इसी से मेरी माता को सन्देह हो गया है शुलघुद्धि शरुतवुद्धि--फिर ? साणांवका--दम लोग दो-एक दिन में गान्घार जाने चाले है । मेरी सादा यान्घार देश की हद न । गान्धार में मेरी माता को दो चढे शन्नन्रेत्र मिले ह इसीलिए । श्रुतचुद्धि--सुके चामरयों से कोई ढर नहीं है साणदिका जीवन दो वाए नहीं मिलता । प्रेम दो व्यक्तियों से नहीं किया जाता । क्या तुम सुभे छोड़कर चली जाथोगी माणघिका ? माणुविका--जाना ही होगा श्रुतबुद्धि 1 तुमने हटय के घाव डर सम्बन्ध में नहीं चताया ।




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