भारतीय समाज मुद्दे और समस्याएँ | Bhartiya Samaj Mudde Aur Samsyaye
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
11 MB
कुल पष्ठ :
352
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)10 भारतीय समाज : भुद्दे और समस्याएँ
नही मिल पाता है। अल्प वेतन का काम करने के कारण वे तथा उनकी भावी पीढ़ियाँ
कार्यकुशलता के अभाव के कारण पीढ़ी-दर-पीढ़ी निर्धनता का जीवन व्यत्तीत करती हैं।
प्रत्येक पीढ़ी का चक्र निर्धनता से प्रारम्भ होकर सर्वदा निर्धनता पर ही समाप्त होता है।
5. बेरोजमारी (10९1019८) --निर्धनता का एक प्रमुख आर्थिक कारक
बेरोजगारी का विकराल रूप है । पिछले वर्षो मे देश में बेरोजगारी मे भयंकर वृद्धि हुई है।
जून, 1991 के अन्त तक रोजगार कार्यालय के अनुसार 406 लाख बेरोजगारों के नाम पंजीकृत
थे। अनुमान लगाया गया है कि 2002 तक देश में बेरोजगारों की संख्या लगभग 9 करोड़
40 लाख हो जाने की सम्भावना है। इन परिस्थितियों में शिक्षित बेरोजगारी का विकराल रूप
प्रतिभा-पलायन को बढ़ावा दे रहा है तथा स्तातकों, शिल्पकारों, किसानों, औद्योगिक
श्रमिको, मजदूरो, साक्षरों आदि को निर्धनता का जीवन व्यतीत करने के लिए बाध्य कर
रहा है।
(4 ) राजनैतिक कारण {?०॥11८ब॥ (08०५5८४)--राजनैतिक अस्थिरता भी निर्धनता
के लिए उत्तरदायी है। जब राष्ट्र के आर्थिक साधन देश के राजनीतिज्ञों के हाथ में आ जाते हैं
तो वे स्वयं साधनसम्पन्न व्यक्ति बन जाते हैं और केवल थोथे नारों से, कि 'निर्धनता को
समाप्त करो से निर्धनत्ता को बनाए रखना चाहते हैं। इलीनर ग्राहमम का मत है कि निर्धनता
निवारण का राजनैतिक नारा उन लोगों को देन है जो स्वयं साधन-सुविधासम्पन हैं, निर्धन
व्यक्तियों ने ऐसा नारा नहीं लगाया।
राजनैतिक अस्थिरता के परिणामस्वरूप भी निर्धनता उत्पन्त होती है। शक्तिशाली बर्ग
निम्न वर्ग का शोषण करता है। भ्रष्टाचार, कालाबाजारी, मुनाफाखोरी सब और व्याप्त हो जाती
है, इससे असन्तोष हो जाता है, इस असन्तोष के कारण उत्पादन गिरता है, इसके फलस्वरूप
व्यापार में उतार-चढाव आता है। कभी-कभी युद्ध के कारण भी अधिक आर्थिक खर्च हो
जाता है और राष्ट्र भी दिवालिया हो जाता ईै 1 इस प्रकार, राजनीति अनेक रूपों में निर्धनता के
लिए उत्तरदायों मानी जा सकदी है।
(5) अशिक्षा (॥|४८०७८५)--निर्धनता का कारण व्यक्तियो की अज्ञानता और
अशिक्षा भी है। 1951 मे साक्षरता 18 3% से बढ़कर 2001 में 65.38 प्रतिशत हो गईं।
2001 में भारत में चिश्व मे सर्वाधिक निरक्षर 35.55 करोड़ हैं। शिक्षा की कमो के कारण
व्यक्ति न तो तार्किक दृष्टिकोण से, और न ही भावात्मक स्तर पर अपनी स्थिति का मूल्यांकन
कर पाते हैं। ग्रामीणों मे साहूकारो द्वारा सदियों से अपना शोषण होते देखकर भो उनमे चेतना
उत्पन्न नहीं होती कि वे निरक्षरता का अन्त कर कम-से-कम अपने बच्चों को तो साक्षर
बनाएँ। आज प्रत्येक कार्य के लिए शैक्षिक योग्यता आवश्यक है, कृषि, यांत्रिकी, उद्योग,
अध्यापन, आयुर्वेद आदि सभी क्षेत्रो में प्रशिक्षण को महत्ता दी जा रही है। यदि समय रहते
दस ओर जागरूकता नहीं ताईं गई, तो भारत अज्ञानता के कारण और निर्धन होता जाएगा।
लिख-पढ़ कर व्यक्ति में अपना भला-बुरा समझने का विवेक जागृत होता है कि उसे कैसे
गोरी-रोजी कमानीं है। अतः निर्थनता का महत्त्वपूर्ण कारण अशिक्षा है।
( 6 ) निर्धनता की संस्कृति ((/७1९ ७1 7०४८1५)-डेविस्त इलेश ने निर्धनता का
कारण दरिद्रों के रहते का तरीका या निर्धनता कौ सस्कृति जताया है। गरीबों के विश्वास,
जीवन के तरीके, मूल्य, माजदण्ड, चर्तमान निर्धनता को पूर्वजन्म का फल मानना आदि
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