समाज शास्त्र परिचय | Samaj Shastra Parichay

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Samaj Shastra Parichay by रामपल सिंह गौड - Rampal Singh Goud

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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समाजयास्त्र वया है क सधोधन श्रौर परिवतन कर ढातता या । वह प्रति का श्ाणिक नियवय कर ता था । उसकी महाएं सफतताओं का सबब महत्त्वपूग परिणाम यह हुमा कि थ्रगति वी उसकी वारणा हृढ हो गई । १८वीं गतातओं तक यह घारणा इतनों श्रवव हा गईं थी कि मनुष्य को विश्वात्र हा गया. या कि समाज दी प्रगति नि्दिप्ट भादरों भौर सरयों ब अ्नुमार भर सामूटिक प्रयत्ता दारा की जा सकतीं है । समाज के वैत्ानिक अव्ययन का प्रारम्न इसी कात में हुमा । सामाजिग जीवन के विसिन्न पहुदों (85८5) के वेचानिव झव्ययन के तिय राजनीठियासुस, धयथास्त्र समाजशास्त, मानवसास्त्र, विधियास्त्र द्ाचारशासन, झाटि सामाजिद वितानों (०८ तय 5) वा जम प्रौर विदास हुग्रा 1 सम्पता वी दपठि से जहाँ एक झार मनुष्य झधिकाधिक प्राइठिव समम्याग्रों का सुकावता भव शरीर विरच से करता शरीर प्रहति पर नियवद्य यटाता जाता था, दूसरी भार उसका समाज विकसित हो रहा था 1 समाज के विरास की गति पहले वी अ्पसा बटूत हीद हा गयी म्ौर इसदिय प्रचलित सम्याम्ा विचारों श्ौर श्रातगों में पावितन सी बहुत ठजी से हो रहा था । इससे तक सामाजिक समम्याये बैग हा गई जो प्राचोन समस्यामों की अपेसा श्विक गम्मीर शरीर जटित थी । इस परिस्थिति की सामाजिक झावश्यकततामा ने मनुष्य का सामाजिक दिलानां की उत्ततिं करने के लिय बाध्य किया । क्योकि उसके सामने रन गम्मार श्री जटित समस्वाध़ों का सुवम्दात का महूत्वप्नण प्रसत या 1 समानशाहम का जाम और विकास विभिन्‍न सामाजिर विताना ने मनुष्य के व्यवहारा श्रौर सामाजिक सम्व थों तथा उनने निप्पन्त रचनायों ($8ए८ए८5) तथा व्दयवस्थाप्रों (85! ८प25) के विभिन पला के विदेष श्रध्ययन को श्रपना उट्श्य मान निया । भ्थशास्त्र मनुष्य के आधिक स्पवहारों भ्रौर उनकी उपयों का श्रव्ययतन करता था । राज्यशास्त्र (#०00८21 टाधाध्ट) उन सामाजिक सम्व यों का श्रष्ययन करता था जो राज्य भर सरकार दारा निर्यात हात थे । मानव यास्त्र (ठैए0५09010टू४) ने भादिस समाजा (प्यार का उ0दर065) ने षेत्र को चुना 1 झ्ाचारयास्त्र (एफ /८5) मच्च तया बुर श्राचारा के झन्तर का समस्यकर समाज को नविज साग पर चलने का सुन्दाव देन जया । इसी अकार वियानरास्त्र (्रतड्छाएठथएट्ट) समाज-सनािचात आदि सामाजिक वितात सामाजिक जीवन के विरिप्ट दहुलुध्ा (एडए८ए187 25८5) के विरेष अव्ययन में सपग्न हा गये । किस्तु इन एकागी (००४०-10) झाययना स एस चयन का पिकास नहीं हो पाया जी समग्र समाज की बयाय जानदारी प्रस्तुत कर सकें 1 सम्प्रथ समाज के सच्चे चिय दो सोचने में यह ज्ञान अपयाप्त था। इस शझ्रनाव का कद्ध समाज- विचारका ने समस्द लिया था । उनमें स फासीसी विद्वान श्रगस्त कोम्त (ठण्ड एप एए98-1857 2. 0) अग्रणी भा । उवन समाज के समग्रसप का




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