पाप की छाया | Paap Ki Chhaaya
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
6 MB
कुल पष्ठ :
164
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)दल जायेंगे और तुम्हारी आँखों का तेज सम्तात्त हो जायगा | उस दिन
तुम्हें स्वयं अपने से घृणा होने लगेगी ।?
सुरेश चुपचाप सुन रहा था | उसके मन में जाने कैसी डथल-पुथल
নন্দী हुईं थी |
कुँबर गजेन्द्र ने कहा, (तुम्हें यौवन का वरदान मिला है | तुम्हें
उसकी शक्ति को समझना चाहिये। अपने जीवन के सुनहरे दिनों को
बरबाद मत करो | तुम्हारे युग के सभी आदर्श भूरे हैँ। सभी उद्देश्य
गलत ई | इसीलिये कहता हूँ कि नये संधर्षों की खोज करो। दुनिया में
ऐसी कोई बात नहीं है जो तुम नहीं कर सकते । तुम नहीं जानते कि तुम
क्या हो और तुम क्या बन सकते हो । योवन एक बार जाकर फिर कभी
वापस नहीं आता | दुनिया में बौबन के सिवा और कुछ है ही नहीं
सुरेश ।!
सुरेश आश्चर्य से कुंवर राजेन्द्र की बातें सुन रहा था। उसकी सम
में कुछ भी नहीं आया कि वह क्या कहे | उसे लगा जैसे जो कुछ भी
कबर राजेद्ध ने कहा है उसमें जरा भी भूठ नहीं हैं। जरा भी गलत
नहीं है।
कुछ देर बाद राजेन्ध ने फिर कहा, 'ें जानता हूँ तुम मुझ से मिल!
कर अवश्य प्रसन्न हुए होंगे ।?,
सुरेश ने रजेद्र की श्रोर देखा । उसने कहा, 'हाँ, में बहुत खुश हूँ ।
इस परिचय के लिए में सदा ही प्रसन्न रहूँगा।?
सदा ! यह बड़ा भयंकर शब्द है। जब में इसे सुनता हूँ तो मेरा
हृदय कॉँप उठता है। महिलाएँ इस शब्द का प्रयोग बहुत करती हैं।
आर इसका प्रयोग करके वे अपना सारा आकर्षण समाप्त कर देती हैं।
इस शब्द का कोई अर्थ नहीं है |?
हेमन्त ने आधे घण्टे के भीतर ही चित्र समाप्त कर लिया | वह बहुत
देर तक उसे अपलक नेत्रों से निहारता रहा। फिर उसने राजेद्ध को;
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