रामचरितमानस | Ramcharitmanas

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Ramcharitmanas by गोस्वामी तुलसीदास - Gosvami Tulaseedas

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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१ श्री गणेज्ञाय चमः ॥ श्री गोस्वामी तुलसीदासकृत रामचरितमानस बालकाण्ड श्री विनायकी टीका-सहित इलोक--वर्णानामर्थंसंघानां रसानां छन्दसामपि१ । मंगलानां च कर्त्तारो वन्दे वाणीविनायकों ॥ १॥ सूचना--श्री तुलसीदासजी श्री रामचरितमानसः नामक ग्रन्थ को भाषा-दोष-रहित तथा निविघ्नता से सिद्धहोने के हतु श्री सरस्वतीजी ओौर श्री गणेशजी कौ वन्दना करते है । उसीके अनुसार श्रीरामचरितमानस की टीका आरम्भ करने के पूर्व टीकाकार-कृत मगलाचरण- दोहा--वाणि विनायक पद कमल, नमन विनायक कीन्ह । श्री विनायकी तिलक कौ, श्रीगणेश कर दीन्हु॥ १. वर्णाना---धी गोस्वामी तुलसीदासजी अपने महाकाव्य श्रीरामचरितमानस (अर्थात्‌ रामायण) कै आरम्भदही मे शास्त्र की इस आज्ञाका पालन करते है--“आशीर्नमस्क्रिया वस्तु निर्देशोवापि तन्मुखम्‌ । अर्थात्‌, काव्यं के आरम्भ मे (१) आशीवदि-युक्त, (२) नमस्कारात्मकं, भौर (३) वस्तु-निदंश रूप मद्धलाचरणो मे से किसी एक का होना आवश्यकं है । इस हेतु यहाँ पर नमस्कारात्मक मगलाचरण किया गया है, भौर मगलाचरणसे ग्रन्थ के आरम्भ करने काफल शास्त्र मे इस प्रकार है- आदिमध्यावसानेषु यस्य ग्रन्थस्य मगलम्‌। तत्पाठात्पाठनाद्वापि दीर्घायुर्धामिको भवेत्‌ ॥ अर्थात्‌, जिस ग्रन्थ के आदि, मध्य और अन्त मे मगलाचरण होता है, उसके पढने-पढाने वाले, दोनो, दीर्घायु और धर्मात्मा होते है। वर्णाना इसमे तीनों अक्षर गुरं है क्योकि वकार सयुक्त अक्षर के पहले रहने से दीर्घं समक्षा गया है । जैसा महर्षि पाणिनि ते कहा है कि 'सयोगे गुरु” । इस हेतु ग्रन्थ का आरम्भीय गण मगण है जो सब प्रकार से श्रेष्ठ समझा जाता है। इसका विशेष पिंगल- विचार दसी काण्ड की पूरौनी में मिलेगा । अथेसघाना --अथे तीन प्रकार के होते है-- (१) वाच्य, (२) लक्ष्य, भौर (३) व्यग्य । इनका विस्तार पुरीनी मे है । “रसाना--साहित्य के रस नव है सो उदाहरण-सहित पुरौनी मे देखे । 'छन्‍्दसा'-- छन्द अगणित ই । यथास्थान उनका वर्णन किया जाएगा । यहाँ पर इतना ही लिखना पर्याप्त है दोहा--है कल से बत्तीस लौ, छन्द बानवे लाख । सहस सतासी आठ सो, छयासठ पिगल भाख ॥ इस काण्ड के छल्दों का पिगल-विचार पुरौनी मे है ।




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