हिल्लोल | Hillol

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Hillol by शिवमंगल सिंह - Shaivmangal Singh

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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हिल्लोल -« कै ++ मेरे पावन, मेरे पनीत जब नैश प्रकृति के अचल में मुसका उठते हो मंद-मंद्‌ हो जाता है क्षण-भर मुखरित मेरा अलसित जीवन अमंद, करते हो आँख-मिचोनी सी टग-द्वार खोल, कर पुनः बंद जज उठता है निष्पद पड़ी, मेरी बीणा का विरह-गीत मेरे पावन, मेरे पुनीत। जब सज सुक्ता-मालाश्रां से कर उठते हो मिलमिल-मिलमिल चांदी के सक्ष्म-सितारों-सी रश्मियां विस्त रिलमिल-रिलमिल करते हो कुद्द संकेत मात्र अगणशित हृ॒ग-सेनों से हिलमिल, जग-सा जाता है क्षण-भर को विस्म्रति में सोया-सा अतीत, मेरे पावन, मेरे पुनीत ।




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