मुक्ति का मार्ग | Mukti Ka Marga

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Mukti Ka Marga by जेम्स एलेन - James Allenदयाचंद्र गोपलिय - Dyachandra Gopliya

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जेम्स एलेन - James Allen

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दयाचंद्र गोपलिय - Dyachandra Gopliya

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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ध्यान की दाक्ति ! से प्रगाद होने चाहिए । याद्‌, रक्सो तम्र दता से करमशः उन्नति करते हए ही सत्य ओर ज्ञान फो प्राप्ठरूरसकते हो । यदि तुम অই ओर पक्के हिन्द हो तो महात्माओ के चरित्र की निर्दोष पवित्रता ओर उत्तमता पर निरतर विचार करते रहो और अपने जीवन म मन, वचन, काये से उनकी शिक्षाओं का पान करो कि जिससे तुम उन जेसी पणता ओर पविता प्रात करः खो । उन धमे का दोग वनानेवालों की तरह न चलो जो सत्य के अटल सिद्धांत पर विचार करना नहीं चाहते ओर अपने गुरू के वनों के अनुसार भी काये नहीं करते, कित केवल यह चाहते है कि चाह्य भें छोगों को दिसलाने के लिए ऊपरी मन से पूजा पाठ किया करें, अपने ही साम्प्रदायिक विचारों पर जमे रह भौर पाप भौर दुःख के थाह ससद्र म गोते लगाते रहें | वास्तविक अशभिप्राय यह है कि ध्यान के घछ से पक्मपात को छो इ कर ओर देवी देवता अथवा धम वा साम्प्रदाय विदेय का सचमान मी विचार नौ फरक उच्चतर होने का उद्योग करो और व्यथे के झूठे रीति रिवाजो को त्याग कर अशानताके चप से निकलने का प्रयत्न करो । इस प्रकार शान और विवेक के राजमाग पर चलने से ओर चित्त को एकान्न करके ईश्वर- की ओर लगाने से तम कहीं नहीं रुकोगे, बराबर आगे बढ़ते हुए चले जाओगे, यहां तक कि छुम अपने अभीए स्थान पर पहुंच जाओगे अथोत मोक्ष पद को प्रात कर छोगे | मनुष्य सच्चे दिल से एकाग्र-चित्त होकर ध्यानमें बैठता - हे वह पहले दिन तो सत्य और ब्रह्म को अपने से बहुत दूर देखता है| परत फिर दिन दिन निकटवर देखता जाता है। ब्रह्मदादय। पए चदने बाला मनुष्य ही रत्य या जह्य को समश्च ধু ९,




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