विनोबा के साथ | Vinoba Ke Saath
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
7 MB
कुल पष्ठ :
222
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)वचिनीवा के साय ७
चिन्तन कर सकते है । उसके वाद रास्ते मे ही चच, मुखाकाते मादि
आरम्भ हो जाती हे। वह चर्चा तो घरेलू चर्चा जैसी रहती हे, इसलिए
वड़ी रोचक मालूम होती हे। दिल तो चाहता है हर एक शब्द सुनूं, छेकिन
उसके लिए विनोबाजी की गति से चलना बडा मुण्किल हे ।
आज प्रमा वहन के साथ बातचीत हदो रही थी । विनोवाजी ने कटा--
“मं चाहता हं कोई एक शकराचाये जैसी तेजस्वी, वैराग्यमू्ति मौ र ज्ञाननिष्ठ
स्त्री निकले । उसके নবী स्त्री-जाति का उद्धार नही हौ सकता हे 1
सेवापुरी के सम्मेछन में जब विनोवाजी ने कहा था कि “स्त्री-जाति को ब्रह्म-
चयं ओौर सन्यास का अधिकार ह?“ तव करई सनातनियो से दिव ।
रिव 1} कहा होगा 1 (?)
गोव नजदीक आ रहा था। रामधुन का घौष, वायो की घ्वति भौर
भूदान के नारे आदि की समिश्र ध्वनि सुनायी दे रही थी। स्वागत के
लिए जगह-जगह पर द्वार बनाये गये थे) सारे रास्ते साफ किये गये थे,
आम्र पल्लवो के बन्दनवार लगाये गये थे। पुणष्पवृष्टि हो रही थी। रास्ते के
दोनो ओर वच्चे से लेकर वृढ़े तक असख्य नर-तारी खडे थे। “'भूमिदान
यज्ञ सफदर करंगे और “महात्मा गाधो की जय---इन दो नारो से सारा
आंकाश गज उठा। मुझे ऐसा छगा कि जनता यह सूचित कर रही हे
कि इन दो मारौ मे कुछ आन्तरिक सगति दै।
आज का हमारा निवासस्थान एक कॉलेज था। चर्चा मे कुछ सवाल
पूछे गये। सवाल अच्छे थे।
एक भाई ने कहा--'भूदान-यज्ञ ट्रस्टीशिप (7771४६४८७॥७) के अन्दर
हैया नही?“
विनोबा-- जी हाँ, है। लेकिन जमीन के बारे में हम यह नहीं कह
सकते कि हम उसके ट्स्टी है वयोकि जमीन तो परमेश्वर की देन है)
अपनी जायदाद के हम ट्स्टी है, मालिक नहीं--यह भावना पेदा करनी
है। जो चीज नैतिक दृष्टि से गलत मानी जाती है, वह समाज की दृष्टि
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