जैनधर्म में दैव और पुरुषार्थ | Jaindharm Mein Daev Aur Purusharth
श्रेणी : धार्मिक / Religious
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
5 MB
कुल पष्ठ :
180
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)५२] जेनधर्ममें देंच और पुरुपार्थ |
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हेण नदीं कर सकते हैं| -जगतके प्राणियोंका विभाग प्राणोंकी
अपेक्षा. नीचे সন্ধার ই-_ `
/ . आग दश हते हँ---.पांच इन्द्रिय श्राण, काय- वर वयन च
शन बट, प्राण, यायु, उच्छवास । जिनसे कोटं जीव स्थुल शीं
जाकर कुछ काम कर सके उन शक्तियों € ৮16511895 ) জী দা
कहते हैं ।
एकेन्िय प्राणी--जैसे प्रथ्वीकायवारी जलकायपारी, अग्मि-
कायघारी, वायुकायबारी, वनसतिकायवारी, ए००1७७1०४ इन पांच
पकारके स्थावर कायवालके एक स्पर्नइन्द्रिय होती है, जिससे छू करके
शी. जानते हैं। इनके चार् भाण पाए जति हैं--? दछर्दीनदन्धिय
कायल, ३ आंधु, 9 उच्छवास | |
दरीद्धिय प्राणी-ञेते ख केचुया, कौड़ी, संख, सीप |
कै स्यरीन व रसना दो दद्धियां हाती हूँ, ये छूकर व खाकर जानते
हैं। इनके प्राण छ: होते हैं। एकेन्ियके चार प्राणेमिं रसना इद्धिय
. च वचनव्रर वट जतत ईँ ]
, ˆ तेन्दरियप्राणी- ते चीरी, লন ज, इनके स्प्ीन, रसना
चाक तीन् इन्द्रि होती है। ये छूकर, खाकर व संवकर जान सक्ते हैं
इनके प्राण सात होते हैं एक नाक इच्ध्रिय बढ़ जाती है |
चौन्िय आणी--जैसे मकखी, भौरा, पतंग, मिह इनके स्प्शन
सवना, नाक जख चार् इन्दि होती हैं। ये छूकर, खाकर संघकर व
देखकर जान सक्ते हैं। इनके प्राण आठ होते हैं। एक आंख बढ़ जाती है।
-. 'चिन्द्रिय.आ्राणी असैनी--जैसे पानीमें रहनेवाडे कोई २
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