जैनधर्म में दैव और पुरुषार्थ | Jaindharm Mein Daev Aur Purusharth

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Jaindharm Mein Daev Aur Purusharth by शीतलप्रसादजी - Sheetalprasadji

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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५२] जेनधर्ममें देंच और पुरुपार्थ | ৮০০০০০১০১০২ + ~+ --- ~ ५.५ १. 49 हेण नदीं कर सकते हैं| -जगतके प्राणियोंका विभाग प्राणोंकी अपेक्षा. नीचे সন্ধার ই-_ ` / . आग दश हते हँ---.पांच इन्द्रिय श्राण, काय- वर वयन च शन बट, प्राण, यायु, उच्छवास । जिनसे कोटं जीव स्थुल शीं जाकर कुछ काम कर सके उन शक्तियों € ৮16511895 ) জী দা कहते हैं । एकेन्िय प्राणी--जैसे प्रथ्वीकायवारी जलकायपारी, अग्मि- कायघारी, वायुकायबारी, वनसतिकायवारी, ए००1७७1०४ इन पांच पकारके स्थावर कायवालके एक स्पर्नइन्द्रिय होती है, जिससे छू करके शी. जानते हैं। इनके चार्‌ भाण पाए जति हैं--? दछर्दीनदन्धिय कायल, ३ आंधु, 9 उच्छवास | | दरीद्धिय प्राणी-ञेते ख केचुया, कौड़ी, संख, सीप | कै स्यरीन व रसना दो दद्धियां हाती हूँ, ये छूकर व खाकर जानते हैं। इनके प्राण छ: होते हैं। एकेन्ियके चार प्राणेमिं रसना इद्धिय . च वचनव्रर वट जतत ईँ ] , ˆ तेन्दरियप्राणी- ते चीरी, লন ज, इनके स्प्ीन, रसना चाक तीन्‌ इन्द्रि होती है। ये छूकर, खाकर व संवकर जान सक्ते हैं इनके प्राण सात होते हैं एक नाक इच्ध्रिय बढ़ जाती है | चौन्िय आणी--जैसे मकखी, भौरा, पतंग, मिह इनके स्प्शन सवना, नाक जख चार्‌ इन्दि होती हैं। ये छूकर, खाकर संघकर व देखकर जान सक्ते हैं। इनके प्राण आठ होते हैं। एक आंख बढ़ जाती है। -. 'चिन्द्रिय.आ्राणी असैनी--जैसे पानीमें रहनेवाडे कोई २




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