कर्मविपाक अर्थात कर्मग्रंथ | Karmavipak Arthat Karm Granth

55/10 Ratings. 1 Review(s) अपना Review जोड़ें |
Karmavipak Arthat Karm Granth by पण्डित सुखलालजी - Pandit Sukhlalji

लेखक के बारे में अधिक जानकारी :

No Information available about पण्डित सुखलालजी - Pandit Sukhlalji

Add Infomation AboutPandit Sukhlalji

पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

(Click to expand)
[91 जिन शब्दोंकी विशेष व्याख्या अनुवादसें आगई है, उन शब्दों फा सामान्य हिन्दी अथे।लख फरके विशेष उ्याख्याके प्र्तका सम्बर लगा दिया है। साथ ही प्राह्षत शब्दकी संस्कृत छाया भी दी है, जिससे संस्करतज्ञोंको बहुत सरलता हो सकती है। कोप देनेका उद्देश्य यद्व है कि आजकल प्राकृतके सर्वेद्यापी कोपकी आवश्यकता सममी जा रही दे और इसके लिये छोटे बड़े प्रयत्न भी फिये जा रहे हैं। हमारा विश्वास है फि ऐसे प्रत्येफ अन्थके पीछे दिये हुये फोष द्वारा महान्‌ फोप वनने चहुत्‌ कुछ मद॒द मिल सकेगी। महदान्‌ कोप बनानेवाले, श्रत्येक देखने- योग्य प्रथपर उतनी बारीकीसे ध्यान नहीं दे सकते, जितनी कि बारीकीसे उस एक-एक अथको मूलमात्र वे 'अनुवाद-सहित प्रफाशित करनेवाले ध्यान दे सफते हैं.। तोसरे परिशिष्टमें मूल गाथायें दी हुई हैं। जिससे फि भूल मात्र याद करतेवालोंकों तथा मू्मात्रका पुनरावर्तन करने पालोंकी सुभीता हो। इसके सिवाय ऐतिट्ासिक दृष्टिसे या विषयदृष्टिसे मूलमात्र देखनेवालोके लिग्रे भो यद परिशिष्ट उपयोगी येया! चौथे परिशिष्टमें दो फोष्टक हैं, जिनमें क्रमशः श्वेवाम्बरीय दिगम्बरीय उन कम-विषयक प्रन्थोंका संक्षिप्त परिचय फराया गया है, जो अब तक प्राप्त हैं या न ट्वोनेपर भी जिनका परिचय सांत्र मिला है। इस परिशिष्टके द्वारा श्येताम्बर तथा दिगम्वरके फर्म साहित्यफा परिमाण ज्ञात होने उपरान्त इतिहासपर भी बहुत कुछ प्रकार पढ़.सकेगा ।- इस तरह इस प्रथम फसम्न्थके अजुवादकों विशेष उपादेय नानेफे लिये सामग्री, शक्ति और समयके अनुसार कोशिश की




User Reviews

No Reviews | Add Yours...

Only Logged in Users Can Post Reviews, Login Now