मानस का सामाजिक दर्शन | Manas Ka Samajik Darshan

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Manas Ka Samajik Darshan by बैजनाथ सिंह 'विनोद' - Baijanath Singh 'Vinod'

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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पारिवारिक संगठन ९५ कस्यप अदिति महातप कीन्हा! तिन्ह कहं मे प्रव बर दीन्हा ॥ - ते दसरथ कौसल्या रूपा । कोसलपुरी' प्रकट नर भूपा।! तिन्ह के गृह अवतरिहर्दड जाई। रघुकुलतिलक सो चारिउ भाई ७ कारतिकेय के जन्म के सबध में यह तप की क्रिया और पहले आरभ होती है। पार्वती भगवान्‌ शंकर की. प्राप्ति के लिए घोर तप करती हैं। माता का स्थान पिता से भी अधिक महत्त्वपूर्ण होता है। गोस्वामी तुलसीदास ने कौशल्या माता की विनेषता वणन करते हुए कहा है : व्यापक ब्रह्म निरंजन निगुन विगत विनोद । - सो अज प्रेम भगति वसं कौसल्या के गोद । माता-पिता को शिशु के पालन मे भी बहुत सावधानी बरतनी पड़ती है । यह एक प्रकार का तप ही होता है; लेकिन बालको की स्वाभाविक मधुरता, उनकी सरलता और चपलता माता-पिता के मन को मुग्ध कर लेती है। शिकश्षुओ का स्वाभाविक आकर्षण उन्हें आवश्यक सुरक्षा प्रदान करने मे सहायक होता है। यद्यपि वालक राम और उनके भाई भरत, लक्ष्मण तथा शत्रुघ्नं राजपुत्र ह, फिर भी उनके सामान्य बाल-व्यवहार मे कोई विशेष अतर नही । माता कौशल्या श्ल उछंग कबहुक हलूरावे, कबहुँ पालने घालि झुलावे! और : प्रेस मगन कौसल्या निस दिन जात न जान । জুন জনই অজ লালা লাক चरित्त कर गान ॥ रामचंद्र बढते हैं और कुछ शिक्षा प्राप्त करके पिता के आदेश के अनुसार राज्य-कार्य मे दिलचस्पी छेते है: प्रातकारू उठि के रघुनाथा। सातु पिता गड नर्वाह साथा ॥ मायु सामि करहि पुर काजा । देखि चरित ह्रषं मन হাজা।। विरवामित्र के आने पर महाराज दशरथ के पुत्रप्रम की परीक्षा होती है। उनके यह कहने पर कि : अनुज समेत देहु रघुनाथा । निसिचर-बध से होब सनाथा ॥




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