मानस-माधुरी | Manas-Madhuri

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Manas-Madhuri by बलदेव प्रसाद मिश्र - Baldev Prasad Mishra

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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[ ५ | प्रतएव 'सो जानहिं सपनेहु जिन देखा । भुशुण्डिजी ने ( सातवें नखशिख में ) मी राम का यही वालरूप देखा जिसमें वात्सल्य की श्रपेक्षा श्रद्धा श्रपषंख विशेप था । वे भी नख से शिख की ओर बढे किन्तु पदो में चौथा चिन्ह कमल ( अनुग्रह रूपी लक्ष्मी का उत्पत्ति स्थल ) भी देखा--किलकनि चितवनि ( हास तथा सुद्ृष्टि ) भावति मोदही-- पह है छल वल वचन' के साथ--मवमोचन वितवन--नाचहि निज प्रतिविम्ब निहारी--जननि सुखदाई भ्रजिर विहारी रूप भुशुण्डि ने देखा গীত “সী भुशुण्डि मन मानस हसा' रूप था वह मनु शतरूपा ने देखा--यह धक्षिसयुक्त रूप था ( पहिला मखशिख )--ऐश्यं तथा माघुयं दोनो से युक्त+- परेमप्रवणएता के कारण शिख से नख तक यह्‌ रूप देखा गया--समी नखदिखो का सार श्रौर साथ ही शक्तिमत्ता का पूर्य वंमव है इसमे--उनकी वामागिनी ह भ्रादि शक्ति ( लीला, करुणा ) छविनिचि ( लदमी ) जगमूलां ( माया }--यदही है उस शक्ति का श्रध्यात्म, श्रधिदेव भ्ौर अधिमृत रूप--यह है शक्ति श्रौर शक्तिमान्‌ का मेदाभेद रूप---नील सरोरुह नीलमणि नीलनीरघर श्याम' वाले दोहे का महत्व--प्रीतिमा्ियो के लिये मानवी नखदिख है प्रौर भीतिमागियो के लिये विराट नखशिख ह । ८--रास फी लीला (उनका व्यवहार--नारो जनों के प्रति) सती को जोरि पारि प्रणाम--प्रयुखूप का दिग्द्ग॑न-वृन्दा-पाति- ब्रत्य माहात्म्य । शतरूपा । देवि, माँगु वर जो रुचि तोरे । सभी नारियाँ दोपमुक्त-- ताडका क्रोघ की प्रतीक एवं सूपंणखा काम की प्रतीक--पअ्रनुग्रह के साय निग्रह्‌ गोतमनारी---जनकपुर की नारियाँ। छुवती भवन भरोखन्ह लागी--जगन्त के प्रकरण में नारी सम्मान श्रोर नारो सरक्षण--प्रामवधुटियाँ, शवरी । मानहुँ एक भगति कर नाता--साथ ही नारदोपदेश में 'प्रमदा सव दुख खानि! की बात--- नारी का सेव्यरहूप और भोग्यहूप---ना री शब्द से तात्पवं-- तारा श्रौर मन्दोदरी- एक नार।ब्रत, श्रनमूयोपदे्च का तात्पयं--लौकिक पक्ष में मी श्लौर भक्तिपक्ष में भी--नरनारी में प्राकृतिक, मनोदैज्ञनिक श्रोर समाजव्यस्था की दृष्टयो से प्रन्तर तथा उसकी पावनता श्रपावनता 1 &६--राम की लीला (उनका व्यवहार हरिजनो, शिरिजनों ध्ररि जनोके प्रति) निपादराज---निकट वंठाई, लियेहु उरलार्ई, । सवा चुजाना~~ मनुष्य के स्वाभिमानं बौर उज्ज्वलता वौ ऊंचा उठने वाते तत्व-- संचमणाने नो पाता प्रौर सखा कठा, फिरतो सवने भ्रपनाया, मन द्रम वचन




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