हारिए न हिम्मत | Haariye Na Himmat

55/10 Ratings. 1 Review(s) अपना Review जोड़ें |
Book Image : हारिए न हिम्मत  - Haariye Na Himmat

लेखक के बारे में अधिक जानकारी :

No Information available about नारायण लाल परमार - Narayan Lal Parmar

Add Infomation AboutNarayan Lal Parmar

पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

(Click to expand)
हारिए न हिम्मत 15 का को खदाई गरू हई। लाल के लिए यह काम किसी तमाग से कम ने था। सात हाथ की गहराई के बाद ही कएं में बटान निकल आई। बेचारा झगरू अपने साथियों सहित লিল दिन-नर घन चलाकर चदान को तोड़ता रहता। लाल ऊपर बेंदा-बैंठा आवाजें देता रहता। उनका उत्साह শ্র্তানা । ক और उसके सा वी, लाल से परिचित थे । इसलिए उसकी बात का वरर नं मानन) चकि मामना ठ्कै का था अतएव प्रतिदिन मजदूर मिलने का प्रश्न हो नहीं उठता था। लाल भी हिम्मत हारने वाला नहीं था। लगभग एक पखवाई़े की मेहनत के बाद कथां तयार हमा । कगरू ने मुखिया से पसे लिए और अपने লালিনা में बांटने लगा। लाल भी उपस्थित था। उसने झट मजदूरी में से अपना हिस्सा मांगा। रगरू ने पहले तो मजाक समझकर इस ओर ध्यान ही नहीं दिया परंतु लालू की जिद देख- कर उसे गस्सा आ गया। लेकिन लाल किसी भी तरह अपना हिस्‍सा छोड़ने को तेयार नहीं था। बात बढ़ गई। होते-होते हाथापाई तक की नौबत आ गई। लालू अड़ा सो अड़ा ही रहा। आखिर मामला गांव की पंचायत में ले जाना पडा । लालू इसके लिए भी तेयार था। वह किसी पंचायत की धमकी से डरने वाला नहीं था) नियत दिन पंचायत की बैठक हुई। बात दूर-दूर तक फैल चक्रो थो । अतएव फसला सुनने के लिये काफी लोग आ जुटे थे। लाल पहले से ही उपस्थित था । कगरू और उसके साथियों के आते ही पंचायत का काम शुरू हो गया। मुखिया और उसके साथी लालू को अच्छी तरह जानते थे। सच पूछो तो वे लोग भो लालू की आदत से तंग आ चके थे । चाहते थे कि आज लाल को कुछ ऐसा सबक सिखाया जाए कि भविष्य में वह किसी को तंगन करें। यही कारण था कि आज वे सब इस मामले में




User Reviews

No Reviews | Add Yours...

Only Logged in Users Can Post Reviews, Login Now