फूल और कुर्ता | Phool Aur Kurta

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Phool Aur Kurta by मैथिलीशरण गुप्त - Maithili Sharan Gupt

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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भातिथ्य राम गरण को भारत सरहार के অধ-বিমান ফলক करने तीन वपे योते घूके थे । इततों बड़ी सरकार की व्यवस्या में जगह और उना मधम पाकर रामशरण मे अनेक ऐसी सुविधायें पार्ट सी जो जन-सापारण के লিউ स्थप्न-गात्र थी। प्रतिवर्ष मंदानों को तेडपा देते वालों गर्मी से भागपार 2 साय तक विमता शत प्रर जनिदाम ओग मास तर रेहलों ने थाही शहर को रौनक 1 रामगरण का जन्म हुआ या मेरठ जिते के एक যাহ में, जहाँ मूमि ऋतु-ऋतु में अपने उदग प्र्‌ हमक ष्वेका प्रहार सर्व र, शटरय उदास्ता में बीज प्रटग करने से लिए प्रस्युत रहतो | । हरी-मरो फ़्मतों ये विणं में उस भूमि की रखता कुछ হী ডিন হব पातौ रै दि दिमान पमन फ काट षेर पने सनिङ्ानो मे मभेद चेते है । जमौन बेचारों बेरौदरक और उद्दाम हो जाती हूं जौर अपने की इक पाने शो आशा में शिर हंस वा वा सह मे विये तैयार हो जाती है। उन उपजाऊ प्रदेशों बा रुप धनृप्प के उपयोग से विस-घधिस शर पोदा सुटरिपिन थी भाँति हो परादै निमि भान. भाज भोर उसकान ने হটার সী ইম ধক বানী सियार बरतने যা ম্যান ছা अद्र नही मिता | ভমবী আব तियाह অনিল হেস্টা गिर्‌ एषषा पन्‌ गुदनुश नहो उशना! न शमधस्य अपने पर से बनस्तर मे खाया थो रशदा या ओग दण्द से सररार के आर-पर का /साद, करोशे को सब्दा सझ বারী भते प्न को प्रा देवा एा। अवकाश ने समर रट स्याम-पास बदे दरहियों घर उन्परत बापु मे सीना शुत्रा, गाएरे सास सेकर, सोन दूर ठर निरा दोध्य शर शहर बा आवयरर শা ऱ्ता। 5. और मई हे महोवो ये शिररे जग चारा




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