प्रतिज्ञा | Pratigya.
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
3 MB
कुल पष्ठ :
168
श्रेणी :
हमें इस पुस्तक की श्रेणी ज्ञात नहीं है |आप कमेन्ट में श्रेणी सुझा सकते हैं |
यदि इस पुस्तक की जानकारी में कोई त्रुटि है या फिर आपको इस पुस्तक से सम्बंधित कोई भी सुझाव अथवा शिकायत है तो उसे यहाँ दर्ज कर सकते हैं
लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
No Information available about नृसिंह राजपुरोहित -Nrisingh Rajpurohit
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)आयो स्हारी ज्यमण जायो दीर
चूनड-तो ल्यायों रेसभी जो ।
मेल तो छाव मरीज
ततौ तो तोला त्तीम भी
श्रोई, तो हीरा खिर जाय
मअरू तो हाथ पचास जो
নানী ঈ লাঙ্যা জামী ভাত
से'रा में बाजी सैनाई जी
आयो म्हारो जामण जायो बीर
चूनड तो ल्यायो रेसमोजी |
पिछली साल मैं श्राया तव बैठा बैठा वीरा सुन रहा था और बाई गा
रही थी । उस बक्त न काने गाते गाते क्या हुआ सो कण्ठ मर्या गया झौर साँखें
भर গাই । मने उसका हाध पकड कर कहा, एसा क्यो वाई २ तो बोली--
'कुछ नहीं भाई, यू' ही न जाने मन कैसा हो गया तुम रोज बीरा गवति हो,
पर कौन जाने जिस दित काम पड़ेगा मैं रहूंगी कि नहीं ।*
“तुम ऐसा सराब संचती ही क्यों हो ए मैंने कहा ।
बयु' ही रे माई, इस शरीर का क्या मरोंसा | आज है श्ौर कल नहों ।
दूसरे जिसे जिस चीजे कौ $च्दा ज्यादा होती वह है पूरी नही होती है ।'
गले में काटे से अटकने लगे और तोम पर कौए जोर जोर से बोलने
জট । कोष काव |
किसनू का ध्यान आया वह कछिघर मंशा ? रसोई मे धु बैटी माग
काट रही थी । उसे पूछा तो पता प्रढा कि प्रास के कमरे में सोया होगा |
जाकर देका तो আমন में फटे पुराने कपडे विद्या कर सोया या और बाहों
में क झोरण लिये हुआ था। मैं सड़ा खडा उसके मासूम चेहरे को बाफी
समय तक देखता रहा | बह रह रह कर अपने छोटे-छोटे होठों को शामिल
करके नींद में ही स्तनपान की आवाज़ कर रहा था ।
धाएू बोली--'यह रोज रात को ऐसे हा सोता है मामाजी 1 यदि बाई
प्रत्मिति | रष
User Reviews
No Reviews | Add Yours...