गांधी सिद्धांत | Gandhi Sidhant
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
4 MB
कुल पष्ठ :
184
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)कांग्रेस आर उसके पदाधिकारी
पाठक--ठदरिये, उद्वरिये, आप बड़ी चेज़ीसे आगे बढ़े जा रहे
हैं, मेरे प्रभकी न जाने आपने कहां छोड़ दिया | मैंने आपसे खरा-
ज्ये सम्बन्ध प्रश्त किया था और आप पर-राज्यकी चर्चा कर
रहे हैं। मैं अंग्रेज्ेके नाम नहीं खुनना चाहता झौर भाप यहददी
सुना रहे हैं। पेसी भवसामें हमारी आपकी राय मिलना सर्भव
षी मदम होता है। यदि आप विना विषयान्तर किये फेचऊ स्थ-
राज्यके सम्बन्धे अपने विचार प्रकट करें तो में सुमुंगा। भीर
इधर उधरफी यातोंसे मुझे संतोष न होगा ।
संपादक--आप अधीर दो रहे हैं। में अधीर नरीह
सकता। यदि आप थोड़ी देर छुन लें कि मैं क्या कद्दता हूं तो
में समझता हूं कि आपको अपना विपय मिल ज्ञायग्रां। स्मरण
रिय, शष प्क दिने ही तैयार नदी षो जाता । आपने मेरी
बात काट दी और कद्दा कि में हिन्दुस्पानकी भलाई चादनेवालों-
की बात सुनना नहीं चाहता इससे यह प्रकट छोता है कि कमसे
कम आपके लिये स्वराज्य असी यहुत दूर है। आप जैसे
लोग यदि यहुतखे ष्टौ जायं तो म लोगोंकी फमी उन्नति न होगी
यद् वात अच्छी तरद समम्ड रीजियै 1
पाठरु-मुम्डे तो यह भाद्ूम होता ३ कि भाप द्रधर उधश्की
यातें छेह कर असल यातको दी भुलाना चाहते हैं। जिन्हें
आप देशकी भलाई चादनेवाले समझते हैं उन्हें में सा नदी
सम्रब्ता। तब आपकी ये यातें मैं क्यों छुनूं? जिन्हें आप
शाएके ज़वक फहते हैं, भला यताइये तो, उन्होंने उसके लिये
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