प्राचीन भारत का कला विलास | Prachin Bharat Ka Kala-vilas

55/10 Ratings. 1 Review(s) अपना Review जोड़ें |
Prachin Bharat Ka Kala-vilas by हजारी प्रसाद द्विवेदी - Hazari Prasad Dwivedi

लेखक के बारे में अधिक जानकारी :

Author Image Avatar

हजारीप्रसाद द्विवेदी (19 अगस्त 1907 - 19 मई 1979) हिन्दी निबन्धकार, आलोचक और उपन्यासकार थे। आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी का जन्म श्रावण शुक्ल एकादशी संवत् 1964 तदनुसार 19 अगस्त 1907 ई० को उत्तर प्रदेश के बलिया जिले के 'आरत दुबे का छपरा', ओझवलिया नामक गाँव में हुआ था। इनके पिता का नाम श्री अनमोल द्विवेदी और माता का नाम श्रीमती ज्योतिष्मती था। इनका परिवार ज्योतिष विद्या के लिए प्रसिद्ध था। इनके पिता पं॰ अनमोल द्विवेदी संस्कृत के प्रकांड पंडित थे। द्विवेदी जी के बचपन का नाम वैद्यनाथ द्विवेदी था।

द्विवेदी जी की प्रारंभिक शिक्षा गाँव के स्कूल में ही हुई। उन्होंने 1920 में वसरियापुर के मिडिल स्कूल स

Read More About Hazari Prasad Dwivedi

पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

(Click to expand)
শু शाम्यूल-सेवन स्पश्े निखार देता है, सौभाग्यशें आवाहन करता दै, वस्म गुगन्धित जनाता है भौर ऋफ जम्य रोगोंझछो दूर करता £ (মৃত হাঁ ৩৬-২%-২৭)। इसीलिये इस सर्वुणयुक्त भ गारमाधमङे ल्मे सावधानी भौर निपुणता दौ भावदयक दै! झुपारी चुना और खेर ये पानके आवश्यक उपादान हैं । इन ग्रत्येछकों विविध भति मुगन्घित बनानेडी विधियों पोथियोंमिं लिणो हैं। पर इनझी मात्रा कला मर्मशछो दी माजूम होती दै। स॑र ज्यादा हो जाय तो छाल्मा एयादा होकर भद्ो हो जाती दे मुपारों अधिक दो जाय सो हालिमा क्षोण होकर भश्नोमन हो उत्ती है, यूना भधिक द्वो जाय तो सुखश्च गन्ध मौ बिगड़ जाता है और क्षत द्वो जानेड्री भी सम्भावना है, परन्तु पत्ते भधिर दो तो मुर्गग्ध बिखर जाती दे । हसौलिये इनकी मात्नाका निर्णय बड़ी सावधानीसे होना चादिए। ग़तझों पत्ते अधिक देने चाहिए और दिनक सुपारी ( ¶° सं ७७-३६-३७) । सो प्राचीन भारतका मागरक धानके घीड़ेके विषयमें बहुत सावधान हुआ फरता था । ताम्बूल सेवनके बाद चह उत्तरीय संमाल्ता चा भौर बपने कार्यमें जुद जाता था। बह कार्य व्यापार भी द्वो सच्चा है, राजशासन मो हो समझता है, और मम्नणादिक भी হী सकता है । ४--रईसको जाति समृद्ध रईस ब्राद्मर्णो, क्षत्रियों और वेश्योंमें छे ही हुआ फरते थे। परन्तु श्रीद न्ठेल न मिलने से यह नहीं समझना चाहिए कि शरद्व लोग सम्रद्ध कमी होते द्वी नहीं थे, सच्ची दात यह है कि समृद्ध लोग शरद नहीं हुआ करते थे। स्द्ध द्वोनेके बाद लोग या तो ध्राह्मण या वैश्य--अधिक- तर कैय--देठ हो जाया करते घे, या शभ्रिय सामन्त । उन दिनों भारत-




User Reviews

No Reviews | Add Yours...

Only Logged in Users Can Post Reviews, Login Now