विविध प्रसंग | Vividh Prasang

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Vividh Prasang by स्वामी भास्करेश्वरानन्द - Swami Bhaskareshvaranand

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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श्र विविध प्रसंग (१) कर्मयोग मानसिक ओद भैतिक समी विपो से भना को पृथू कर ना ही दमा ट्य है । इतत ल्य के प्राप हो जानि प्रर भाला देखती है फ बद सर्वदा ष्टी एकावी दहै और ই ভাবী बनाने के लिये अन्य झिसी की भावश्यकता नहीं। जब तक जपने पो गरी बनाने के डिये हमें अन्य किसी की आवश्यकता: होती दे, तब तक गुल'म हैं | जबे “ पुरुष? जान छेता, है कि वद्द मुक्त हे, ठसे अपनी पूर्णता फे द्यि भन्य (किसी की अवश्यकता नका एवं यष्ट স্কনি नितान्त अनांबश्यक दे, तब रैबल्प-लाभ दो जत्ता ५ै,। , ८ मनुष्य चौँदी के चद टुकड़ों के पीछे,दै।ड़ठा रहता ই और उनकी प्राति वेः व्यि अपने एक सजातीय को मी पोता देने में




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