पार्श्वनाथ का चातुर्याम धर्म | Parshvanath Ka Chaturyam Dharma

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Parshvanath Ka Chaturyam Dharma by दामोदर धर्मानंद कोसांबी - Damodar Dharmananda Kosambi

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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१० जानैगर शैश्षव्यकर देदन्याग करना सतुचित ई । সু प्रकारका লহালা गोंधीजीफा अमिमत है ॥ श्रद्ापस्था তুই दे, दायेति किसी य्रकारकी श्यारीरिक या मानसिक सेवा न्दी दो सक्ती, अल्मोद्धास्के दिष्ट व्यायस्यक साधनाका पालने करनेका खामध्य भी नहीं रद्दा है, अन इम एश्वी या समाजंके टि केयल भाररूप धन गये हैं--ऐस़ा जिदं लगता द्वो उनके लिए; सड़ते रइनेंका अपेक्षा प्रायोपनेशन करके मरणरा बरण करना एक शुद्ध सामा- লিক धर्म द। पाड्य बिडुर आदि पौशणिक व्यक्तियोने इस धर्मक पाटन कियाद | स्गमी विवेकानन्द एक उदाहरण च्छि गए रह कि লাভ पापद्धारी बानाने इसी प्रजार देदनयाग किया था | कोई असाध्य ओर संक्रामक चीमारी द्वो जाय और उसमेंसे बचनेकी कोई आशा न रही ष्टो, तो मदक दिर्‌ भ्रायोपतेयन करके देद-त्याग करना उचित हे । जिस पकार दर प्एक्को इस वातकी चिन्ता रखनी होती ई कि उसका जीयन समाजके लिप बाधक न उन जाय, उसी तरह इन वातकी चिन्तां रखना भी समाज धर्मके अनुझूल ही हे कि उसका मरण मी समाजे लिप्‌ बाधक न यने | + समी जगद्‌ यद मानः जादा दै कि आमवात करन्प एक सामाजिक अपराध दै। सभी भर्मशात्र कदते हें कि आत्मधांव करनेराडेकों सोश नहीं मिलता, उसऊ्री अधोगति द्वोती दे ॥ अतः यद्द एक सगाल হা 2 कि कानूत और घगशझारूपी इस दृष्टिके साथ उल्डिखित प्रायोरवेशन धर्मका सेल कैसे बिठाया जाय | मन्ुयकों कमी न कमी आपने आप सुत्यु तो आने दी याढी दे; परछ उसे अपनी इच्छासे, चादे मिश्र क्त अपने ऊपर ऊ लेनेका अधिकार महुप्पकों हे या नहीं, यददी प्दन इस चर्चाके मूल्मे दे | जो रूमाज महुष्यस कहता है कि * मु्दें अत्मघात करनेका अधिकार सदा दे क्ट स्वर्यं नेकं अपराधियोंक्नो झत्युदड देता दे। इस परसे यह अनुपान निकाला या सस्नी दै कि निमे जीनेसे कोई सार सादस गे छोदा हो, यह केयछ अपनी इच्छासे मत्युको ररीकार न करे; चढ्कि इस




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