हिंदी और गुजराती नाट्य साहित्य का तुलनात्मक अध्ययन | Hindi Aur Gujarati Natya Sahitya Ka Tulnatmak Adhyayan
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
10 MB
कुल पष्ठ :
351
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)२ हिन्दी प्रोर गुजराती नादुय-साहित्य
झास्प्र मे झब्द और अर्थ के साथ-साथ रहने वे भाव को 'साहित्य' वहा है। कृतव ने प्रपने
प्रथ 'वषोक्तिजीवितम्' मे कहा है--
साहित्यमनयों* शोभाशालिता प्रति काप्यसौ।
प्रन्यूनानतिरिकतत्वमनोहारिण्यवस्यति 0१४ १७॥
अर्थात् जिसमे शब्द और भ्र्थ, दोनों की न्यूनता और आाधिव्म से रहित, परस्पर
स्पद्धपूवंक मनोहारि, श्लाभनीय स्थिति हौ बह 'साहित्य' है । *
भामह ने 'वाव्यालवार' में अब्दाथों सहिती काव्यम' (१ १६) कट्वर काव्य
की वही परिभाषा दी है जो साहित्य की है। सस्छत में माहित्य और वाब्य शब्द बहुवा
समान प्र्थ मे प्रयुक्त हुए है । भत् हरि वे प्रसिद्ध श्लोक “मादित्य सगीत फला विहीन
में 'साहित्य' को काव्य का ही समानार्थंक दाब्द माना है। साहित्यदर्पण, काव्यप्रकादा
श्रादि ग्रथों वे नामों से भी इसे वात की पुष्टि होती है। डा० भगवानदास न श्रपते रस.
मीमासा' में एवं स्थान पर उल्लेख किया है वि “बिना विशेषशा वे' 'साहित्य” शब्द जय
দলা আরা है तब प्राय उसका अर्थ 'काव्य साहित्य' ही समभा जाता है।”' इस प्रकार यह
स्पष्ट है वि 'साहित्य' शब्द 'काव्य' का ही बोधक है।
काव्य मे शाब्द भोर अर्थ सपृक्त रहते है । परन्तु ऐसा कोई सार्थव' वावय हो ही नहीं
सवता जिसमे झब्द झ्ौर भर्थ साथ-साथ ते हो! सभी व्रयो कफो काव्य नही वहा जा
सकता । इसीलिए भागभह' भ्रौर मम्मठ' की वेवल शब्दाथं वैः समवायं रूप-वान्य कौ परि.
भाषा की प्रालोचना बरते हुए “रसगगाघरकार” पढित जगन्नाथ ने उस रचना वो দান্দ
माना है जिसमे रमणीयता उत्पल्त करने में शब्द भौर श्रर्य एब-दूसरे से स्पर्ड़ा करते हुए
साथ-साथ प्षागे बढ़ें । कालिदास ने इसी णब्द रौर प्रथं वै मयोग की तुलना पावती श्रौर
परमेश्वर वे सयोग वे साथ वी है
बागर्याविव सम्पुक्तोी बागर्थप्रतिप्तये ॥
जगत पितरौ यन्दे पार्वतीपरमेश्वरो ॥'
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