अथ श्रीदादूदयालजी की बाणी | Ath Shreedadudayalji Ki Baani

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Book Image : अथ श्रीदादूदयालजी की बाणी  - Ath Shreedadudayalji Ki Baani

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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` . क्ष्गुरुेब कोअडइ ६१६७ च्‌ येता कीजै आपये, तन मत उन मन छाय पंच समाधी राखिये, इजा सदन सुभाय ८१९ -- दाद जीव जजालों पड़िगया, उलझंथा नवमंण सूत कोइ यक सुल्झे सावधान, गुरु बायक अवधत <२ गुरु मनका অল্প चंचल चहुँ दिलि जात है, गर बाइक सो वैषि दाद सैगति साधकी, पारब्रह्म सो संधि ८३ ` गुर अकुल मनि नदी, उदमद मता अंध दाद मन चते. नही, का न देखे फंध ८४ दाद मारयां' बिन मानं नही, यह मन हरिकी आणं ज्ञान 'खडग गुरु देवका, ता सेग सदा सुजाणं ८५ जहां थै.मन उडि चछ, केरि तहां ही राखि तहां दाद ठे कीन करि, साध करै गरु साखि ८६ दाद मनहीं सो मख उपज्ञे, मनदीं सो मर घोय सीख चडी गुरु साधकी, ते तू निमेख होय ८७ दाद कछब अपणं करिचियि, मन इंद्रिय निज ठौर नाम निरंजन छागि रहु, प्राणी परहर और এ „ _ ~ गुरु ज्ञान अड्ढ । मनक मते सब कोई खेले, गुरु सुख भिरखा कोय दाद सनकी माने नहीं, सतगर का सिख सोय ८९ सत्र जी को मन ठगे, मनकों बिरछा कोय . दाद गरके ज्ञान सो, सांइे सनसुख होय ९० दाद'एक सों ले लीन हणां, सबै सयांनप एह सतगुरु साधू कहत हैं, परम तत्व जपि छेह ९१ ০০ कस শসা শপ




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