वक्रोक्ति सिद्धांत के आलोक में श्री मैथिलीशरण गुप्त के काव्य का अनुशीलन | Vakrokti Siddhant Ke Alok Me Sri Maithlisharan Gupt Ke Kavya Ka

Vakrokti Siddhant Ke Alok Me Sri Maithlisharan Gupt Ke Kavya Ka by पुष्पा त्रिपाठी - Pushpa Tripathi

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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सा पत्यु: प्रथमापराध समये सख्योपदेशं बिना। नो जानाति सविश्रमांग वलनावकोक्ति संसुचनमु। । ” बाण:- बाण ने भी श्लेष, प्रहेलिका आदि का _ प्रयोग करते हुए शब्द क्रीड़ा का रस लिया है, बाण की वक्रोक्ति इतिवृत्त वर्णन से भिन्न काव्य की चमत्कार पूर्ण शैली तथा वचन-विदग्धता की ही पर्याय है। जिसका इन्होंने इस प्रकार विश्लेषण किया है - नवो्ड्थों जातिरग्राम्या, श्लेषोडक्लिष्ट: स्फुटो रस: । विकटाक्षर बन्धश्चि कृत्स्नमेकत्र दुर्लभम्‌। । “ इस प्रकार स्पष्ट है कि बाण का वक्रोक्ति मार्ग शब्द और अर्थ दोनों के चमत्कार से सम्पन्न है ,. उसमें आक्लिष्ट इलेष और नवीन अर्थ दोनों का चमत्कार है। भामह :-...... काव्यशास्त्र के ज्न्थों में वक्रोक्ति का. प्रथम व्यवस्थित विवेचन भामह के- काव्यालंकार” में मिलता है। भामह ने व्क्रोक्ति में शब्द और अर्थ दोनों की वक़ता का समावेश माना है - न नितान्ता दिमात्रेण जायते चारुता गिराम्‌। वक्राभिघेय शब्दोवित्तरिष्टा वाचामलंकृति। 1 . उनके अनुसार नितान्त आदि शब्दों के प्रयोग से वाणी में सौन्दर्य नहीं आता।. शब्द और अर्थ में वक़ता होनी चाहिए, जो वाणी का अलंकार है।. भामह का मानना है कि इन उपादानों से तो. आभूषण, उपवन और मालाएं अलंकृत होती है, वाणी को अलंकृत करने का सामर्थ्य तो शब्द और अर्थ की की वक्ता में है - न अल 'तदेभिरंगैर्भूष्यन्ते भूषणोपवन म्रज: । वाचा वक्रार्थ शब्दोक्तिरलंकाराय कल्पते। 1”. अमरुशतकमू - पृ0 सं0 पक डा फादटार . हर्ष चर्ति.- 18 . काव्यालंकार - 1/36......... _ काव्यालंकार - 5/66.......... अर (0७3. हे




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