दिवंगत हिंदी-सेवी : भाग 2 | Divangat Hindi Sevi : Vol -2

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Divangat Hindi Sevi : Vol -2  by क्षेमचंद्र 'सुमन'- Kshemchandra 'Suman'

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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है । एेसे महानुभावोंमे सेठ उद्धवदास ताराचन्द, सन्त टेकराम, तोलाराम आजिज, देवदत्त कुन्दा राम शर्मा, साधु टी० एल० वास्वानी, प्रभुदास ब्रह्मचारी, मुलचन्द्र वसुमल राजपाल तथा टोपणलाल सेवाराम जेतली के अतिरिक्त जयरामदास दोलतराम का नाम भी स्मरणीय है। कश्मीर और पजाब प्रदेश यद्यपि भाषा की दृष्टि से हिन्दी-भाषी प्रदेशों की अपेक्षा अपना स्वेथा पृथक्‌ अस्तित्व रखते है, किन्तु हम यह भी नहीं भुला सकते कि हिन्दी साहित्य की अभिवद्धि में इन दोनों प्रदेशों का सर्वथा अनुपम योगदान रहा है। जम्मू मे उत्पन्त हुए पष्डित दुर्गाभ्रसाद मिश्र ने जहों सन्‌ 1878 मे कलकत्ता से भारत मित्र का सम्पादन-प्रकाशन किया था वहाँ उन्होंने तत्कालीन कश्मीर-नरेश महाराज रणबीरसिह के अनुरोध पर जम्भूसे जम्वू प्रकाश नामक पत्र का सम्पादन भी किया था । कुछ समय तक कश्मीरी पण्डित मुकन्द- राम ने लाहौर से प्रकाशित होने वाली नवीनचन्द्र राय की “ज्ञान प्रदायिनी नामक पत्रिका का सम्पादन किया था। इनके बाद आगा हश्न कश्मीरी, हरिक्ृष्ण जौहर, तुनमीदत्त 'शैदा', मोहनलाल नेहरू, रामेण्वरी नेहरू, उमा नदरू, सुणीला आगा, विमना रना, प्रसुम्नकृष्ण कौल, लक्ष्मीधर जास्त्री, विष्त्रम्भरनाथ जिज्जा, सूर्यनाथतकरू, प्रेमनाथ दर, नन्दलान चत्ता नथा नरेन्द्र खजू रिया आदि अनेक महानु भावों ने अपनी रचनाओ के द्वारा हिन्दी की समृद्धि मे अपनी प्रमुख भूमिका निबाही थी । * स्वातन्त्य-पूर्व पजाब का तो हिन्दी-साहित्य की अभिवृद्धिम सर्वया अप्रतिम योगदान रहा है। यदि हिन्दीत र-भाषी कहकर उस प्रदेश के लेखकों की गणना की जायगी तो वह हिन्दी के साथ बहुत बडा अन्याय होगा । महि स्वामी दयानन्द सरस्वती के द्वारा प्रवर्तित आर्यंसमाज के सुधा रवादी आन्दोलन के कारण वहाँ हिन्दी का जो प्रचार-प्रसार हुआ उसने वहाँ की जनता को हिन्दी-लेखन को ओर प्रेरित किया था| हिन्दी के प्रमुख कथाकार चन्द्रधर शर्मा गुलेरी, सुदर्शन, यशपाल तथा मोहन राकेश इसी प्रदेश की देन है। पत्रकारिता के क्षेत्र से भी इस प्रदेण के लेखको ने साहित्य की अभिवृद्धि में अपना विशेष सहयोग दिया था । हिन्दी के मूधेन्य पत्रकार श्री बालमुकुन्द गुप्त तथा माधवप्रसाद मिश्र भी पजाबी ही थे, क्योंकि उन दिनो हरियाणा पजाब प्रदेश मे था। महात्मा मुन्शीराम न जहाँ अपने 'सद्धमें प्रचारक' नामक पत्र के माध्यम से उस प्रदेश में हिन्दी का बिरवा रोपा, वरहा गुरुकुल क्रागडी-जंमी राष्ट्रीय सस्था की स्थापना करके हिन्दी को अनेक लेखक और पत्रकार प्रदान किए । गृरुकुल में प्रशिक्षित और दीक्षित प्रो० इन्द्र विद्यावाचस्पति, सत्यदेव विद्यालकार, भीमसेव विद्यालकार, घरमंदेव विद्या- मातंण्ड, जयदेव शर्मा विद्यालकार, जयचन्द्र विद्यालकार, वशीधर बिद्यालकार और चन्द्रगुप्त वरदालकार-जेम अनक लेखक व प्रत्रकार पजाबी-भाषी ही थे। महात्मा हसराज, लाला लाजपतराय और लाला देवराज की डी० ए० बी> कालेज, नेशनल कालेज तथा कन्या महाविद्यालय आदि शिक्षा-सस्थाओ का भी राष्ट्रीय जागरण के साथ हिन्दी की अभिवद्धि में प्रचुर योगदान रहा था। इन सस्थाओ मे प्रशिक्षित एवं दीक्षित महानुभावों में आचार्य विश्वबन्धु शास्त्री, आचार्य रामदेव, सत्यदेव परिव्राजक, डॉ० रघुवीर, रघुनन्दन शास्त्री, गोवर्धन शास्त्री तथा परमानन्द शास्त्री आदि अनेक नाम ऐसे है जिन्होंने अपनी रचनाओ के माध्यम से हिन्दी साहित्प को गौरवान्वित किया है। अमर शहीद सरदार भगनससह में भी हिन्दी-लेखन के प्रति रुचि ला० लाजपतराय के 'नेशनल कालेज' में जागृत हुई थी । भाई परमानन्द तथा लाला लाजपतराय ने अपने भाषणों तथा लेखो के माध्यम से पजाब मे हिन्दी के प्रति अच्छा वातावरण बनाया था। महात्मा आनन्द स्वामी सरस्त्रती (खुशहालचन्द “खुरमन्द') ने अनेक वर्ष तक वहाँ से 'हिन्दी मिलाप! दैनिक का सफलतापूर्वक प्रकाशन करके जहाँ अपनी 11




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