सूरसागर में प्रतीक योजना | Soorsagar Mein Prateek Yojna

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Soorsagar Mein Prateek Yojna by डॉ० वी० लक्ष्मय्या शेट्ठी - Dr. V. Lakshmayya Shetthi

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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सूरसागर में प्रतीक योजना अभिन्‍त अंग था। लेकिन मुसलमान-गासन-काल में घराव पीना एक आदत बन गयी थी । उस समय ग्रुलाम रखने की प्रथ्रा भी प्रचलित थी। हिन्दुओं मे सती-प्रथा थीं । 4 स्त्रियों की दा : हिन्दू श्रपनी स्त्रियों का आदर करते थे । फिर भी कन्या के जन्म होने पर प्रसन्नता प्रकट नहीं की जाती थी । मुसलमानों को कुदुष्टि से बचने के लिए हिन्दू-स्त्रिया पर्दे का श्राश्यय लेने लगी । 5 समाज पर शासक-घधर्म का प्रभाव : गासक-बर्म के अत्याचारों से बचने केलिए हिन्दुश्ओों मं जाति सवधी नियम जटिल बनाये गये : श्राचार-विचार के नये नियम वने : पर्दा-प्रवा और वाल-विवाह का प्रचलन हुआ । कुछ हिन्दुश्ों ने इस्लाम धर्म स्वीकार कर लिया। वे अपने साथ अ्रपने पूर्वजनो के विचारों तथा रीति-रिवाजों को भी लेते गए । मुसलमानों की फकीरो, पीरो तथा मकबरो की पूजा में हिन्द्रश्रों की देव-पूजा का प्रभाव स्पप्ट दिखाई पड़ता है | সনাতন “হুল वात में संदेह नहीं रह जाता कि इस्लाम ने हिन्दुत्व पर जितना प्रभाव डाला उससे कही अधिक परिवर्तन हिन्दुओं ने टसलाम में कर दिया हैं 17 (६) आर्थिक परिस्थितियां वेरबाह तथा अ्कवर के समय किसानो की दमा पर्याप्त अच्छी थी । राज- कोप घन से भर गया था। व्यापार एणिया के पूर्वी, पसण्चिमी तथा मध्य के देशो से होता था और उसके द्वारा देश में अपार स्वर्ण-भद्यार एकत्र हो गया था । तत्कालीन परिस्थितियों का साहित्य पर प्रभाव मुसलमानों के आगमन से धामिक श्रीर सामाजिक क्षेत्र में अ्रस्थिरता उत्पन्न हुई, जनता के हृदय में राजनैतिक क्षेत्र से मनन्‍्यास, भाग्यवाद, कर्मवाद आदि भाव- नाये जड जमा चुकी थी । इन परिस्थितियों में दक्षिण का भक्ति-आँदोलन उत्तर भारत मे भी फलने लगा और भक्ति-साहित्य इन्ही परिस्थितियों की देन है । लोक-कल्यारा की कामना वाले सन्त महात्माओं ने पराजित हिन्द जाति को नतिक पतन श्रीर्‌ वार्मिक पराभव से वचाने कै लिए उनके हृदय में भक्ति-भावना का बीज वोना आरम्भ क्रिया । उन्होने लोगो को ईव्वर की सर्वगुण सम्पन्नस्पकी उपासना की श्रोर उन्मुख किया । 1 सैनिल, दीपावली जक, अक्टूबर 1952 ई०, 'भारतीय समाज पर मध्यकालीन तुर्की शासन का प्रभाव नामके निवन्ध ।




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