प्राचीन हस्तलिखित पोथियों का विवरण (खंड २ ) | Prachin Hastalikhit Pothiyon Ka Vivaran Khand-2
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
7 MB
कुल पष्ठ :
236
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
विद्वता और विद्वता जनित विनम्रता, सुहृदता और कांति से दीप्त डा धर्मेंद्र ब्रह्मचारी शास्त्री संत-साहित्य के मर्मज्ञ विद्वान और अनुशीलक थे। उन्होंने हस्त-लिखित दुर्लभ ग्रंथों का गहन अनुशीलन किया था। संत-साहित्य के अनेक दुर्लभ ग्रंथों को प्रकाश में लाने का श्रेय भी शास्त्री जी को जाता है। उन्होंने दुर्लभ-ग्रंथों की एक सुदीर्घ विवरणिका भी तैयार की थी, जिसका दो खंडों में प्रकाशन हुआ था। उनके द्वारा संपादित यह ग्रंथ 'प्राचीन हस्त-लिखित पोथियों का विवरण', अनुशीलन-धर्मी साहित्यकारों एवं शोध के विद्यार्थियों के लिए अनुपम थाती है। बिहार के महान संत-साहित्यकार 'दरिया साहेब' और उनके साहित्य को प्रकट करने
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)[ च |
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२-- श्रनुराग-वाग २ मं १८८८ वरि, १२७८ साल
(१८३१ ई०) सं० १६०६ वि०
(सन् १८५२६ ०)
३-- दँष्टान्त-तरह्न १ २० १८३६ वि०,
( १५७८२ ई० )
इसके आठ अंथ नागरी-प्रचारिणी सभा (काशी) को
खोज में उपलब्ध हुए हैं । दे० ना० प्र० खो० बि० १६०४,
চে सं०---४० , ४४, ७१, ७७, ६१, ६२, ६६ आर खो० वि०
१६०६--११,--प्रन्थ सं०---७४, ए०, वी० | इनमें ४ ग्रन्थ
मुद्रित हो चुके हैं --दे० “हिन्दी-पुस्तकन्साहित्य”--प्रृ० ४७७ ।
१४--देवकवि (६ )--इनका पूरा नाम श्री देवदत्त था। हिंदी के नवरत्नों में एक।
सं० १७३० के लगभग वर्तमान । इन्होंने लगभग ৩০ प्रथो
की रचना की हैं। इस संग्रह में इनके दो ग्रंथ मिले हैं । नागरी-
प्रचारिणी-सभा ( काशी ) को भी इनके १३ ग्रंथ उपलब्ध
हुए हैं । इनका जन्मस्थान थौसरिया ( इटावा ); समनेगाँव
( मैनपुरी ) निवासी; ये फफू द (इटावा ) के राजां मधुकर
साहि के पुत्र राजा कुशल पिंह के आश्रित थे । कवि को संस्कृत
सेंभी नायिका-भेद लिखने का श्रेय प्राप्त है जिसकी एक
ग्रति नायरी-अचारिणी सभा € काशी ) के संग्रहालय में सुरक्षित
है। दे० ना० प्र० के खो० बि० १६२६-२८, प्रू० सं०
३१ क्र० सं० ६५ का लेख । नागरी-प्रचारिणी सभा ( काशी )
को खोज में उपलब्ध अंथों के लिए दे०--खो० बि०---
१६०२-सं० ७, १९१; खो० वि० १६०० सं० ५३,खो० वि
१६०३ ग्रं० सं० २८, ४१, १०८; खो० बि० १६०४ क्र० सं०
३७, १०४, १२०, १२२; खो० बि० १६०४५ अ्ं० सं० २६;
खो० वि०, १६०६ --१६०८ अं० सं० ४६; खो० वि० १६०६
--१६११--अ० सं०-६४ एफू, ६४,वी०,सी०,डी०, ई० । अब
तक कवि के निम्नलिखित प्रेय मुद्वित हुए हैं--अष्टयाम, भाव-
विला, रसविलाख ओर भवानीविलास । दे° हिन्दी-पुस्तक-
साहिन्यः--ए सं° ४७६ ( डा লালাসন্তাহু ঘুম ) |
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