प्राचीन हस्तलिखित पोथियों का विवरण (खंड २ ) | Prachin Hastalikhit Pothiyon Ka Vivaran Khand-2

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Book Image : प्राचीन हस्तलिखित पोथियों का विवरण (खंड २ ) - Prachin Hastalikhit Pothiyon Ka Vivaran Khand-2

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विद्वता और विद्वता जनित विनम्रता, सुहृदता और कांति से दीप्त डा धर्मेंद्र ब्रह्मचारी शास्त्री संत-साहित्य के मर्मज्ञ विद्वान और अनुशीलक थे। उन्होंने हस्त-लिखित दुर्लभ ग्रंथों का गहन अनुशीलन किया था। संत-साहित्य के अनेक दुर्लभ ग्रंथों को प्रकाश में लाने का श्रेय भी शास्त्री जी को जाता है। उन्होंने दुर्लभ-ग्रंथों की एक सुदीर्घ विवरणिका भी तैयार की थी, जिसका दो खंडों में प्रकाशन हुआ था। उनके द्वारा संपादित यह ग्रंथ 'प्राचीन हस्त-लिखित पोथियों का विवरण', अनुशीलन-धर्मी साहित्यकारों एवं शोध के विद्यार्थियों के लिए अनुपम थाती है। बिहार के महान संत-साहित्यकार 'दरिया साहेब' और उनके साहित्य को प्रकट करने

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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[ च | [+ २-- श्रनुराग-वाग २ मं १८८८ वरि, १२७८ साल (१८३१ ई०) सं० १६०६ वि० (सन्‌ १८५२६ ०) ३-- दँष्टान्त-तरह्न १ २० १८३६ वि०, ( १५७८२ ई० ) इसके आठ अंथ नागरी-प्रचारिणी सभा (काशी) को खोज में उपलब्ध हुए हैं । दे० ना० प्र० खो० बि० १६०४, চে सं०---४० , ४४, ७१, ७७, ६१, ६२, ६६ आर खो० वि० १६०६--११,--प्रन्थ सं०---७४, ए०, वी० | इनमें ४ ग्रन्थ मुद्रित हो चुके हैं --दे० “हिन्दी-पुस्तकन्साहित्य”--प्रृ० ४७७ । १४--देवकवि (६ )--इनका पूरा नाम श्री देवदत्त था। हिंदी के नवरत्नों में एक। सं० १७३० के लगभग वर्तमान । इन्होंने लगभग ৩০ प्रथो की रचना की हैं। इस संग्रह में इनके दो ग्रंथ मिले हैं । नागरी- प्रचारिणी-सभा ( काशी ) को भी इनके १३ ग्रंथ उपलब्ध हुए हैं । इनका जन्मस्थान थौसरिया ( इटावा ); समनेगाँव ( मैनपुरी ) निवासी; ये फफू द (इटावा ) के राजां मधुकर साहि के पुत्र राजा कुशल पिंह के आश्रित थे । कवि को संस्कृत सेंभी नायिका-भेद लिखने का श्रेय प्राप्त है जिसकी एक ग्रति नायरी-अचारिणी सभा € काशी ) के संग्रहालय में सुरक्षित है। दे० ना० प्र० के खो० बि० १६२६-२८, प्रू० सं० ३१ क्र० सं० ६५ का लेख । नागरी-प्रचारिणी सभा ( काशी ) को खोज में उपलब्ध अंथों के लिए दे०--खो० बि०--- १६०२-सं० ७, १९१; खो० वि० १६०० सं० ५३,खो० वि १६०३ ग्रं० सं० २८, ४१, १०८; खो० बि० १६०४ क्र० सं० ३७, १०४, १२०, १२२; खो० बि० १६०४५ अ्ं० सं० २६; खो० वि०, १६०६ --१६०८ अं० सं० ४६; खो० वि० १६०६ --१६११--अ० सं०-६४ एफू, ६४,वी०,सी०,डी०, ई० । अब तक कवि के निम्नलिखित प्रेय मुद्वित हुए हैं--अष्टयाम, भाव- विला, रसविलाख ओर भवानीविलास । दे° हिन्दी-पुस्तक- साहिन्यः--ए सं° ४७६ ( डा লালাসন্তাহু ঘুম ) |




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