कवि - भारती | Kavi Bharati
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
डॉ. नगेन्द्र - Dr.Nagendra,
श्री बालकृष्ण राव - Balkrishna Rao,
श्री सुमित्रानंदन पन्त - Sri Sumitranandan Pant
श्री बालकृष्ण राव - Balkrishna Rao,
श्री सुमित्रानंदन पन्त - Sri Sumitranandan Pant
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
7 MB
कुल पष्ठ :
740
श्रेणी :
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लेखकों के बारे में अधिक जानकारी :
डॉ. नगेन्द्र - Dr.Nagendra
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श्री बालकृष्ण राव - Balkrishna Rao
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श्री सुमित्रानंदन पन्त - Sri Sumitranandan Pant
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)श्रीघर पाठक
#ज्े कुछ प्रेम-अंदा पृथ्वी पर, जय दव पाया जाता है ,
सो सब शुद कोपो्तों ही के दुछ में आदर पावा है |
घन-वैमद आदिक से भी, यह थोथा प्रेमनविचार ,
दूधा सोह अशान जनित, सर सत्य झूल्य निस्तर ।
#बड़ी ক্যান ই युवा पुरुष, नि इसमें तेरी झोभा दै
तज़ तेझणी का ध्यान, मान, मन जिसपर देरा लोमा ই
इतना कहते ही योगी षे, हुआ कथिक कुछ ओर ,
छाज-सह्दित संकोच-माव खा जाया मुख पर दीर् ।
अति आद्वर्य दृश्य योगी या बट्ों धष्ट अब आता है ,
परम छलित छावणूय रूपानिधि, पथऊ प्रर्द बन जाता है ।
ज्यों प्रभात थरणोदय बैल विमछ वर्ण सादा +
त्योंदी गुप्त बटोही की छवि प्रम-क्रम हुई प्रशाश |
मचे नेन, उश्च वकशषखट, सूप ठ फेछाता है ,
दामैः इनेः दर्शक के मन पर, निज अधिकार जमाता & 1
इस घरित्र से बैरागी को हुआ जान तत्वाल ,
महीं पुष्प यद पथिक विलक्षण किन्तु सुन्दरी बाछू !
/छ्षमा, होय अपराध साघुपर, हैं दयाल सदुगुणराशी !
माम्य दीन एक दीन विरहिनी, है ययरर्थ में यह दासी |
किया, जगच धाकर् ने, यड आश्रम प्रम पुनीत +
सिर नवाय, कर ओोड्, दुःपिनी गोरी वचन [विनीत {
५
शोचनीय प्रम दक्षा, कथा में कईँ आप सो सुन छीजे ,
प्रैम-ब्यथित अबछा पर् यनी दया दृष्टि योगी कोच ।
केबल प्रथम प्रेरणा के वश छोडा अपना गेह |
धारण क्रया प्राणपति के द्वित, घुरुष-वेष निज देह |
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