सूर की भाषा | Soor Ki Bhasha

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Soor Ki Bhasha by प्रेमनारायण टंडन - Premnarayan tandan

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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{ १६ ) कंठिनाई--५९२, संपादक शा दृ्टिकोभ लोौर क्ष्य; उवरि दिशा में प्रयल कै मादश्यकता--५९४; पुर-्काव्य के पाठ के समत्या--५९५, लिखित पाठ, कंठस्थ पाठ, भक्तो का कंठस्प प्राठ, गरायहों बा कंठस्थ पाठ; सूर-काब्य को हस्तलिछित प्रतिया--५९७, , सूरसायर वी प्रतियाँ--५९७, सूर-सारावलो दी प्रतियाँ, साहित्य लहरी की प्रतियाँ--६०१; मूर के दृष्टिकूट जयवा भूर-यतव सटीक, मूर-पदावनी भरूढायं--६०२; सूर के नाम से प्राप्त अन्य ग्रंथ ६०२, एचादशी माहाह््य--६०२, चबीर, गोबद्धन-लीला, दशमस्कंघ, द्म स्कघ टोदाय, नलदमयंती, नायलीला--६०३; पद-सम्रह, प्राणप्यारो, भागवत-भाषा, भेंवरगीत, मानसायर--६०४; राम-जउन्न, रुविमणी-विवाह, विप्शुपद, ब्याहतो--६०५; सुदामा-चरित्र, नूर-पच्चीमी, सूर- पदावली, सूर-सागर-सार, सेवाफत--६०६, हरिवंश टीवा--६०७; सूर-काप्य के प्रकाशित संस्करण-६:७ मूरमायर--९०२, मूर-नारावनौ --६११, साहित्य- लहरी--६१२ सूरदाप्त के प्रामाणिक प्र८--५१३, सूर-हत प्रंपों के प्रामाणिक सस्करणों को आवश्यकता अब नो है--६१४ ॥ नामानुकमणिका ६१८-६२४ संकेत-सुचो सा० प्र० सभा : नागरी-प्रचारिणी खमा, कारी! लहरी० : 'माहित्यलहरी, लहरियासराय | লাগ 2 शूरमागर', नागरी प्रचारिणी ममा, बारी ) सागर : “मूरसागर*, नागरी भ्रचारिणी सना, বাণী | मा नति : '“पूरसागर', नवलजिश्योर प्रेस, लखनऊ ॥ सा হণ : 'ृरसागर', वेबटेश्वर प्रेस, दवई। নাও. £ भक्षिप्त सूरसायर, डा० वेनीप्रसाद 1 सारा : 'मूरसागर-सारावलो', नवतविद्ोर प्रेस जोर বনি प्रेस के आरंभ में प्रवाधित 1 संकेत-चिह्न जि ४ व, हस्व रूप । ४: खा. अनुच्चरित रूप 1 > > पूद्प से पररूप मे परिवर्तन-सुदव ॥ < ४: पररूप से पूर्वरूप मे परिवतंन-सूचक




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