गर्दिश के दिन | Gardish Ke Din

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Gardish Ke Din by कमलेश्वर - Kamaleshvar

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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लिखा जा रहा है वह भी कल तक गलत हो सकता है पर यह सब भमट है । लोग ऐसी बातें याद रखते हैं श्नौर गलत वक्त पर उलटे सीधे सवाल करके परेशान वरते हैं । इसलिए सबसे श्रच्छा है कि अपनी तरफ से सवाल ही किए जाए नई वहानी की पीठिका के साथ मेरा सम्ब घ किन स्तरों पर है श्रौर उसकी मानसिकता के विपय में मेरी कया धारणाए है इस विस्तार मे यहा नहीं जाऊगा । वेवल इतना कहना चाहूगा कि मैं उसे एक निरतर विकासशील दप्टि के रूप में लेता हू जिसकी झातरिक स भावनाएं किसी तरह के विराम चिह्न से अजित नहीं की जा सकती । मैं वयक्तिक श्रोर साहित्यिक दोनों स्तरों पर भ्रपने को जिंदगी से जुड़ा हुमा पाता हू--पर जुड़े होने का धथ जिंदगी वी सब परिस्थितियां को स्वीकार करके चलना नही है । शिंदगी में बहुत कुछ है जिसके प्रति विद्योह ब्रौर श्राक्नोश मेरे मन में है पर वह सब जिंदगी के ऐतिहासिवा उफान के भ्रतगत थ्याता है। वह श्राज जैसा है कल वैसा नही रहेगा । नहीं रहना चाहिए श्रौर उसके बदलन की ऐतिहासिक चेतना मेरे साक्षीत्व की श्रतिवाय सात है । इस विद्रोह प्र श्राक्रोश वी ही बुछ परिस्थितिया हूँ जिनमें मैं कई वार श्रपन को अकेला भी पाता हू । पर यहू श्रवेलापन जूभन की एक श्थिति है किसी तरह का श्रलगाव नहीं । यह जिंदगी से श्रवेला होना नहीं है जिंदगी के बीच श्रवेला पडकर श्रपते जुडे हो था निर्वाह करना है यायावर वे जीवन का सबसे वडा सतोप या श्रसतीप इसमे है कि उसका रास्ता कभी समाप्त नहीं होता । वह चाहे जितना भटक ले नई अनजान पगडडिया का मोह उसके दिल से कभी नही जाता. जो गुजर चुका है बट उसके लिए दृश्य है--उस दृश्य के अतगत अपना ग्राप भी । कल रात तक जो दुघटना थी अरब वह उसके लिए एक रीमाचंव घटना है। श्रव नई पगडडो उसके सामने है । उससे पूछा जाए कि कमवरुत तु इतनी जोखिम उठावर भी जोखिम के रास्ते पर चलने से वाज व्यो नहीं ता तो वह सिफ मुस्क रा देगा क्योकि जिस दिन वह यह जान लेगा उस दिन वह यायावर नही रहेगा । गदिय के दिन / 17




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