हस्तलिखित हिंदी ग्रंथों का 18वां त्रैवार्षिक विवरण : भाग 1 | Hastlikhit Hindi Grantho Ka Atharhva Trevarshik Vivran Bhag-1

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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(११) उनममिं मंडप निरवांन देवा सदा जीवत मावना मेव || छोलीन पूजा मन महूप सति सति भापत श्री दुत्तदेव अवधूत ॥ 4 ||: > | ৯ म हणदंत का पद्‌ वाघनि रोरे वाघनि लो वाघनि है बट पाड़ी छो। देत करे धट भीतरि पैसे सोपि रे नौ नाढ़ी को ॥ टेक || जिंद भी सोपे चिंद भी सोपे सोपे सुंदुरि काया लो | % ३८ ॐ ते नर जोनि कदे नदीं आध्र सति सति भापे हणवंत জীব জী ২1111 ৯ > ৯ ।} सत्तव॑ती के पद ॥ गहीयौ वाला सत्ति सबद्‌ सुपधारा गगनमंडर चदि प्रीतम प्रसौ । = रूप बरन र न्यारा ॥ टेर | धरता ভু करता मति मानौ स्तिः कौ सवद चिताऊँ। अवख्ग करम ज्यौ नही मेरौ गुज वीज कदि जार्ज १॥ ॐ ১ ৯ इंच्छया वोऊ आदि रू' माया: यूं सति भाषे सतयंती || ৪ 114 || संतों में वावरी साहिबा, बीरू साहव, यारी साहब, बुलला साहब, और विरंच गोसाई' सुख्य हैं २--अ्रथम चार संत गुरुशषिप्य- क्रम.से एक ही परंपरा के हैं। एक हस्त छेख में इनके कुछ शब्द तथा वानियाँ मिली हैं जो रचयिताओं के क्रम से इस प्रकार हैं -- रचयिता रचना । वावरीसाहिवा केवल' एक शब्द । वीरू साहब दो शब्द्‌ ! यारीसाहव तीन रचना $--इयारी साहब के शब्द, २--रप्रैनी; ३--राम के कहरा ! ` उल्टा साहब साखी । इनके कुछ शब्द पिछले खोज विवरण (२०-२३ ) में भी जा चुके. । रचनाओं. काः विषय साधारणतः संत मताजुसार दाशनिक सिंद्धांतों का वर्णन एवं - ज्ञानोपदेश है | रचना काल किसी में नहीं है, लिपिकाल संचत्‌ १८६७. है-।




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