बाईसवीं सदी | Baisvi Sadi
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
4 MB
कुल पष्ठ :
165
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)सेबप्रामका बाग ९
-अब॑ मुझें साथ लेकर सुमेध उस मकानकी ओर चले। इतने में
यकायक तोपके गोले-की-सी आवाज हुईं | पहले तो में चौंक गया, पीछे
पूछनेपर माहूम हुआ, यह जलपानकी सूचना है। मेरी अनेक जिज्ञा-
साओंमें एककी और वृद्धि हुई। मैंने देखा, उधरसे वे स्त्री-पुरप भी-
जो काममें छगे थे-काम छोककर इसी मकानकी ओर चले आ रहे
हैं | मकानके पास जाकर क्या देखता हूँ, साफ पानीके कित्तने ही नल
लगे हुए हैँ । नहानेके छिए साफ जलके टव हैं । मकान बहुत स्वच्छ हें ।
तीन-चार वले-वके कमरे ह । एक हील ह, जिसमे उढ्-दो-सौ . आदमी
बैठ सकते हैँ । कमरोंमें बहुत-सी कुर्सियाँ हैँ ।
.... मेने बल्े हॉलमें देखा, पाँतीसे कुसियाँ और मेज छगे हुए हैं । मेजों
पर एक-एक तद्तरीमें सेव, केले अंगूर आदि कितनेही फल रखे हुए हें
और गिलासोंमें भरकर दूध । हम सब स्त्री-पुरुपोंकी संख्या करीब
एक-सौ थी। मेंने उतनी ही थालियाँ वहाँ देखकर पहले आइचये किया।
क्या स्तर्या भी पुरुषोंकी वगल में बैठकर नाश्ता करेगी ? इतनेहीमें
वे सब स्त्री-पुरुप भी आ मये । सवने स्मितमृख हो स्वागत किया। महागय
` सूमेधने उन्हें सम्बोधित करके कहा---
“साथियो, हमारे आजके अतिधिकी देखकर सबको बल्ी जिन्नासा है
फिर हमारे जैसोंकी, जिनने एकाघ वात सुत ली है उत्सुकताका तो कोई
लिसाव नहीं ! इसीलिए मेने अकेले ही सव सुन लेना अच्छा नहीं समझा, अभी
तो सिर्फ इतना जान पाया हूँ कि हमारे विश्ववंधु जी १९२४ से ही, यहाँसे
१०-१२ कोसकी दूरीपर जमे हुए थे, जहाँसे आज ही आा रहे हैं ।”
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