हिमगिरि - विहार | Himgiri Vihar

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Book Image : हिमगिरि - विहार  - Himgiri Vihar

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सुधांशु चतुर्वेदी - Sudhanshu Chaturvedi

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स्वामी तपोवनम - Swami Tapovanam

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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अवतारिका भारत की दर्तेमान स्थिति अध्यात्मिक छाझुणिक है। वर्तमान पौढी के हम लोग जो दरिद्र, अशिक्षित, आलपो, गुलाम, अल्पजीवी और चु'घन्ते हैं, उस अलौकिक जननी की सन्तान होने का दावा कठिनाई से ही कर कक्षते हैं । परन्तु सौभाग्यवश, इन दुर्भाग्यपूर्ण दितो मे भी बुछ अमूल्य निधियाँ जिन्होने हमारा परित्याग नद्दी क्या है--हमारा हिमालय, हमारी गगा, हमारे मन्दिर, हमारे देवात्य और तोर्य और ऋषियों की पुरातन सल्कृति--इलका पुतर.स्मरण हमे युगान्त-निद्रा से जाग्रत करने के लिए पर्थाप्त है। एक ऐसे विश्व को थो आन्तरिक सघपं से विच्छिन्त है, शान्ति और सद्भाव का प्रन्देश प्रदान करने भौर अत्यधिक पायाण-हृदय भी विश्व-बन्धुत्त की भावना भरते में सम है । भाज जो घुआं हमें आच्छादित किये हुए है, जब तिरोभूत हो जाएगा, तो प्रकाश हमारा आलिगन कर सक्रेगा 1 जब हमें अपविश्न करने वाले घुशले बादल तिरौहित हो जाएंगे तब पूर्णचन्द अलौकिक आमा के साथ जगमगाने लगेगा। कुछ विद्याभिमाती लोगों ने बपनी मूलतापूर्ण बक-मक में कहा है कि भारतीयों में राष्ट्रीय उद्गारों का अभाव रहा है । ओह ! वे जानते ही फ्या हैं-- अ्पि मातुध्यमापस्यामो देरखात्‌ प्रच्युताः पितो १ मनुष्याः ते शन्तु यच शक्यं सुरामुरैः । श्र जन्म-सहष्राणां सदस्तैरपि भारते कदचिःलभते जन्तुर्मानुष्यं धुरय-सम्चयान्‌ ॥। पुराणों का भी यही अमिमत है । जद स्वयंवासी নাহ্‌ আন सत्कमों के प्रभाव को अलौलिक आनन्‍्दामुभूति मे खोने लगती हैं, तव वे प्रष्वी दर पूनऊंन्म लेने के लिए प्रापंना करठो है, जिसके कि थे गाए, जो देवताओं भौर असुरों के लिए भी अम॑म्भव हैं, सम्पन्त करने में स्र हो एके और ऋषियो का कथन है कि ल्ासों पोनियों में भटकने के पश्चात्‌ भारतभूमि में एक बार उस्मसाभ हो जाता है, प््योकि जिरहें स्वर्ग अथवा मोल की लाप्तता है, उनके लिए भारत एकमात्र कर्मग्रूमि है । ऋषियों ने हमारे परतों दा गुणगान इस प्रकार डिया है-+ विस्तारोप्छ यियो र॒स्या खिपुखरिचत्रयानवः ই




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