कप्प्सुत्तमं ब्रहात्कल्पसूत्र | Kappasuttam Brihatkalpsutram

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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३. मूर्ख नहीं होता, ४. अन्धा नहीं होता ।' जो जिनागम की पुस्तक का दान करता है वह सवंविद होता है ।' जो भक्तिभावपुवेक जिनागम लिखता है वह दिव्यसुख या शिवसुख प्राप्त होता है 1 इन मान्यताओं से प्रभावित इस युग में पुस्तक लेखन संरक्षण तथा पठन- पाठन की उत्तरोत्तर प्रगति हुई है । कप्पसुत्तं का यह संस्करण भी इसी उपक्रम का एक अंग है । मुनिश्री मिश्रीमलजी 'मुमुक्षु, मुनिश्री चाँदमलजी, मुनिश्री रोशनलालजी 'सिद्धान्त शास्त्री ने तथा श्री विनय मुनि ने प्रार्थना, व्याख्यान एवं अनेक सेवा कार्य किये जिससे मैं लेखन कार्य के लिए अधिक से अधिक समय प्राप्त कर सका । देव-गुरु-धर्म के प्रसाद इन सबकी रत्तत्रयाराधना सफल हो--यही एक मात्र शुभकामना है । कप्पसुत्तं के लेखन-सम्पादन में पं० दलसुखभाई मालवणिया आदि ने संशोधन संवर्धन में अमूल्य सुझाव दिये हैं वे मेरे लिए अविस्मरणीय एवं चिर- स्मरणीय है । -- मुनि कन्हैयालाल कमलः १९ न ते नरा दुरगत्तिषाप्नुवंत्ति, न मूकतां नैव जडस्वमवम्‌ । न चान्धता बुद्धिविहीनता च, ये लेखयन्तीह जिनस्य वाणी ॥ २ पठति पाठ्यते पठतामसौ, वसन-मोजन-पुस्तक वस्तुभिः । प्रतिदिनं कुरते य उपग्रहृ, स इह सवेविदेव भवेन्नरः ॥ ३ ये लेखयन्ति जिनशासनपुस्तकानि, व्याख्यानयन्ति च पठन्ति च पास्यन्ति) ग्धण्वन्ति रक्षणविधौ च समाद्रियन्ते, ते मत्येदेव शिवशमं नरा लमन्ते -पोत्यग शब्द--अभिधानराजेंन्द्र भाग ५ पृष्ठ १६१२२




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