कषायपाहुड सूत्र | Kashaaypahud Sutra
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
12 MB
कुल पष्ठ :
361
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
No Information available about धर्मदिवाकर सुमेरूचन्द्र दिवाकर - Dharmdivakar Soomeruchandra Divakar
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)ग्रस्त ब्य ना
धर्मरण-रंगभूमिः कर्मारिपराजयैकजय-क्च्मीः ।
निर्मोह-भटनिपेव्या क्षपकर्ेणी चिरं जयतात् ॥
बह क्षपकश्रेणी चिरकालपर्यन्त जयचंत हो, जो धर्म रूप युद्ध की
रगभूमि दै, कर्मरूप शत्रु का धपराजयकर अद्वितीय विजय लक्ष्मी
तुल्य है, तथा जञो मोह रदिव-निर्मोदी स॒भट वीरो के द्वारा सेवनीय है ।
इस भरवकेत्र के आर्यंखर्ड मे ऋषभनाथ श्रादि चौबीस
तीथकरों के द्वारा दिव्यव्वनि के माध्यम से सद्ध्म की वैज्ञानिक देशना
हुई । उनमें अंतिम बर्म देशना पश्चिम तीथकर महाश्रमण महति
गहावीर वर्धेभान भगवान दवारा राजगृह के निकटवर्ती विपुलगिरि
पर हुई थी | उनी पावनवाशौ को एक अंत हूर्त मे अवधार णकर
गौतम ग्रोत्रवारी इंद्रभूति ले उसी समय वार अंगरूप प्रथों की
रचना की और गुरसो से अपने समान श्री सुधर्मा स्व्रामी को उसका
व्याख्यान किया। कुछ काल के अनंतर इंद्रभूति भद्टारक केवलजञान को
उत्पन्न करके और द्वादश वर्ष पर्यन्त केवली रूप से चिदारकर मुक्त हुए ।
उत्तरपुराण मे उनका निर्वाण स्थल्ञ विपुलगिरि का गया दे । उवी दिनि
खमा स्वामी को केवल खान उत्पन्न हुआ। गौतम स्वामी के समान
उन्हीने द्वादश वर्ष पर्यन्त धर्मासरत की बर्षा करके निर्वाण लाभ जिया |
मौ ग्नि जवृध््यामो भट्टा रक ने सवज्ञता प्राप्त की । उन्दोने अडतोस चप
पयन्त केबलीरूप से बिहार करने के अनंतर मोक्ष पदयो प्राप्त की। इस
उस्सर्पिसी काल के वे अतिम अलुचद्ध केचली हुए। महाश्रमस महाब्रीर >
सभवशरण मे खात सी केब्रलियो का सदूभाव कहा गया हैँ | डन केवलियों
ने आयु फर्म के क्षय होने पर मोज्न प्राप्त किया। उनके विपय में यह बात
तातेब्य है ऊश्रोधर केवली ने सबके अन्त में कुडलरगिरि से सोक्ष प्राप्त
दिया था * । यद उथन विलोयपण्णाति फहो इस गाया से अवगत
दीता ४ --
कुंडलभिरिस्मि चरिमों केवलणार्णमु मिरिधमे मिद्धो |
चारणरिसीसु चरिमो मुपास-चन्दा भिष्राणों य ॥ति. प, ४1१ ४७६
६ রি টি হস্ত नण
मध्यप्रदग = दमो जिल्ल से >२ माल दरी पर ऊ-लपुर
नाम झा बायन जिला चयो से अलगृत सुल्दर तथा मनोरम पु“य तीये टै
बहा परत पर বিলেলন অর হাহা ভা হারহা কর কন্থা ঘপুনালন जन्य
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