देसी रियासतों में स्वाधीनता संग्राम का इतिहास | Desi Riyasaton Mein Swadhinta Sangram Ka Itihas

55/10 Ratings. 1 Review(s) अपना Review जोड़ें |
श्रेणी :
Book Image : देसी रियासतों में स्वाधीनता संग्राम का इतिहास - Desi Riyasaton Mein Swadhinta Sangram Ka Itihas

लेखक के बारे में अधिक जानकारी :

No Information available about राजेन्द्र लाल हांडा - Rajendra Lal Handa

Add Infomation AboutRajendra Lal Handa

पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

(Click to expand)
देसो रियासतों में स्वाधीनता संग्राम का इतिहास जिस्मेदारियां आ पढ़ीं जिनको उन्होंने सफलतापूर्वक निभाया। यद्यपि रियासती जनता को कांग्रेस के तीन कर्णघारों--महात्मा गांधी, जवाहरलाल नेहरू और सरदार पटेछ--से हमेशा सलाह-मशविरे मिलते रहते थे, फिर भी आगे कदम बढ़ाने के लिए उसे अपने रियासती नेताओं की ओर हो ताकना पड़ता था। आइए, अब इस प्रश्त पर विलोम रूप में विचार करें। यदि रियासती जनता के नेताओं ने अपने-अपने प्रदेशों में लोकमत संगठित न किया होता तो देश पर क्या बीतती ? देश किधर जाता ? उस दज्ञा में, यदि जोधपुर की जनता ने, किन छोगों से . उसका भाईचारा या लगाव है, यह स्पष्ट ढंग से प्रकट न कर दिया होता, तो उसके दिवंगत महाराजा-जेसे दबंग आदसी को पाकिस्तान में मिलते या स्वतंत्रता की घोषणा करने से कौन रोक सकता था:? भारत के स्वाधीन होने से दो महीने पहले तक ट्रावनकोर के दीवान का रुझान स्वतंत्रता की ओर बना रहा, और जूनागढ़ के नवाब ने तो अपनी रियासत पाकिस्तान में मिलाने की घोषणा कर दी थी। यदि उनकी जनता संगठित रूप से खड़े होकर आवाज उठाना न जानती तो दीवान जी और नवाब साहब की बंदर-घुड़कियों से रियासतों का नक्शा ही बदल गया होता । आज रियासतों के विलय और राष्ट्र के इसरे भागों के साथ एकजीव होने को कहानी “दुनिया के इतिहास कौ सबसे बड़ी रक्तहीन क्रान्ति मानी जा रहौ है; यदि जनता ने जी-जान की बाजी न रूगा दी होती और आजादी की मशाल उनके तपे-तपाये नेताओं के मजबूत हाथों में न होती तो उसका स्वरूप ही दूसरा होता। इसी जनता और उसके संघर्ष की कहानी इस पुस्तक में मिलेगी। कितने ही इतिहासकारों ने भारत की आजादी की कहानी लिंखी है, कितु उन्होंने रिषतो की कहानी को मूल-गाथा में क्षेपक से अधिक स्थान नहीं दिया है। आशा है का रचना उन सराहनीय ग्रंथों के पूरक रूप में ग्रहण की जाएगी, जिनके लेखक हैं डा० ताराचंद और डा० मजूमदार जैसे कलम के धनी । रियासतों में आजादी के सिपाहियों को निष्ठुर दमन-चक्र का थिकार होता पड़ा। इसलिए रियासतों की आजादी की कहानी पर अलग से इतिहास लिखने के लिए प्रचुर बहुमूल्य सामग्री मौजूद है। फिर भी यदि प्रस्तुत पुस्तक को समू्च भारत कक आजादी की कहानी के साथ-साथ पढ़ने की कोशिश की जाय तो हमें आशा ही नहीं बल्कि विश्वास भी है कि पाठक ब्रिटिश सरकार द्वारा भारतीय जनता कै गण्यसान्य प्रतिनिधियों को सत्ता सौंपे जाने से पहले इस उपमहाद्वीप में क्या-कुछ हुआ, उसको अधिक विशद, स्पष्ट चित्र पा सकेगे । 10




User Reviews

No Reviews | Add Yours...

Only Logged in Users Can Post Reviews, Login Now