कालिदास और उनकी काव्य-कला | Kalidas Aur Unki Kavya Kala

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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प्‌ किन्तु आज का पाठक इन परस्पर विरोवौ किवदन्तियो से सन्तुष्ट नदीं होता और वह कवि के देश, काल, जीवन वृत्तान्त आदि १०. चीनी यात्री के सम्बन्ध में सत्य की खोज करना चाहता है | यह दु.ख भी कालिदास का विपय है कि स्वयं कवि ने तथा अन्य भारतीय के विषय में लेखकों न तो इस विपय में चुप्पी साथी ही, पर उन चुप रहे चीनी यात्रियों ने भी इस महाकवि के लिए दो शब्द तक न लिखे जिन्होंने अपनी यात्रा का विस्तृत विवरण तथा उस समय के भारत का बहुत कुछ आँखों देखा हाल अपने यात्रा वृत्तान्तों में लिखा है। फाहियान फाहियान सन्‌ ४०४ ई० प० में चन्द्रमुप्त द्वितीय के शासन काल में भारत आया तथा ६, ७ वर्ष पर्चात्‌ सन्‌ ५११ ई० में वापिस लौट गया । वह्‌ ३, ४ वपंतक तो पाटल्िपुत्र में ही रहा जो उन दिनों गुप्त सम्नाटों की राजधानी था। यदि कालिदास का काल वही माना जाए तो कुछ आइचर्य नही कि इन वर्षों में फाहियान का साक्षात्‌ परिचय भी उससे हुआ हो । सातवीं दाताब्दी के प्रारम्भ में (६०४ ई० से ६४२ ई० तक) सम्राट्‌ हयं वधेन कै राज- कविवाण ने कालिदास की कविता की प्रसा की है किन्तु उन्हीं दिनों भारत में आए दूसरे चीनी यात्री ह्वेनत्सांग ने कालिदास का कुछ भी ज़िकर नहीं किया । इस्‌ प्रकार कवि के जीवव वृत्तान्त के सम्बन्ध में प्रामाणिक वहिः साक्ष्यों का प्रायः अभाव होने के कारण केवल अनृश्रुतियो तथा १९. क्वि के अन्तः सायो का ही मवार शष दह्‌ जाता ह 1. काल के विषय में कठिनाई यह है कि ये दोनों आधार भी विचारक को केवल अन्तः साक्ष्यों किसी निविवाद निर्णय पर नही पहुँचा पाते। का ही आधार शेष तथापि, इन्ही आधारों को लेकर श्री लक्ष्मीधर कल्ला रह जाता है ने अपने निवन्ध 'कालिदास का जन्म स्थान में टीक ही लिखा है कि कवि तथा उसके जन्म स्थान के विपय में किसी निर्णय पर पहुंचने के लिए आवश्यक है कि विचारक उसकी रचनाओं का निरन्तर स्वाध्याय करे, जहाँ कवि जाता है वह भी उसके साथ वहीं पहुंचे, कवि जो कुछ देखता है वह भी उसे देखें, कवि जो कुछ चिन्तन करता है वह भी उसी का चिन्तन करे। (वर्थे प्लेस ऑफ कालिदास पृ० ३ पंक्ति ६-१) अतः, इसी पद्धति पर कवि के ग्रंथों का अनुशीलन करके यहां कुछ विचार करने का यत्न किया जा रहा है।




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