एतिहासिक जैन काव्य संग्रह | Aitihasik Jain Kavya Sangrah

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Aitihasik Jain Kavya Sangrah by शंकरदान जी नाहटा -Shankardan Ji Nahta

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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ঠা प्रभसूरिगीत ( प्रू० ४६-०० ); शिवचूला विज्ञप्ति ( प्रृ० ३३६ 1 वेगड्पद्रावरी ( प्र ३१२ ) } १६ बींका पूर्वाद्ध । छेमराजगीत ( ए० १३४ ) | ३६ वीं का शेपाद्ध --- जिनदत्त स्तुति ( ५० ४ ), जिनचंद्र अप्टक ( प्र० ५ ), कीत्ति रत्नसरि चौ० (प्र० ५१) जिनहंससूरि गीत (9०५३ ), क्षेमईहंस कृत गुर्वाचछी ( प्ृ० २१५ से २१०७ ) ३७ वीं का पूर्वाद्ध -- देवतिलक्रोपाध्याय चौ० (प्र० ५७), भावहर्ष गीत ( प्र १३० ), पुण्यसागर गीत (प्रू० ६७ ), पृज्यवाहण गीतादि ( प्र० ८६, ६४. ११० से ११७ ), जयतपदबेलि आदि साधु- कीर्तिं गीत ( प्र० ३७ से ४५ ), खरतर गुर्वावलि (प्ृ० २१८ से ४२७ ), कीत्तिरत्न सूरि गीत ( प्रृ० ४०३ ), दयातिलक ( प्रू० ४९६ ), यशकुशल, करमसी गीतादि (प्र० १४६, २०४), भादि 1 शेपाद्ध -- जिनचंद्रसूरि, जिनसिंह, जिनराज, जिनसागर सूरि गीत रासादि ( प० ५८ से १३२, १०० से २३०, ३३४, ४५१७ ), खरतर गार्वावलि ( प्र० २२८ ), पि० खर० पटरावरी ( प्र ३१६ ); गुणव्रम सूरि प्रबन्ध ( प्र ४२३ ), विजयसिह्‌ सूरि से ( प्र २४१ )) पद्महेम ( प्र २ ); समयसुन्दं गीत ( घ० १४६ ), छप्पय ( पृू० ३७३ आदि।




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