आत्मानुशासन | Atmanushasan

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Atmanushasan by टोडरमल - Todarmal

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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८ ९३ ) श्रव दश प्रकार सम्यक्ष का सूचने के श्वि श्राल्ला इत्यादि सेग्रह रूप জু ক্ষতি हैं। प्राया छन्द । श्राज्ञामार्गसग्रद्भवमुपदेशात्‌ सत्रवी जसंत्तेपात्‌ । ब्रिस्ताशथोम्पां भवसवपरसावादिगाड़े च ॥११॥ श्र्थ-आज्ला अर मार्ग तें उत्पन्न भया, वहुरि उपदेश तै उन्न भया, वरि सूत्र अर चीज ते उन्न भया; बहुरि विस्तार अर अथनि ते उत्पन्न भया ऐसे आठ तो ए भये | बहुरि अच अर অহলাল है ्रादि बिपे जाके ऐसा गाढ सो अवबगाद परमावगाद दोष ये भये, पेसे दण लम्यक्त्व के भेद जानने । मावाथै--देय उपादेय तत्त्वनि विपे विपरीत श्चभिम्राय रहित सो सम्यक्त्व एक प्रकार ह । तादी के श्राक्ञाविक श्र।ठ फारणनि ते उपजने की श्रपेक्ता ्ाठ भेदे किये हैं. । अर ज्ञान की परकपेता का सहकार करि विशेषपना की अपेक्षा अवगाढ़ू परसाव- गाढ ए ढोय भेद फिये हैं । ऐसे इद्ा दश सेद्‌ जानने । रारो हसही का विंशेप वर्णन के अधि आज्ञा सम्यक्स इत्यादि तीन काव्य कहे है স্পবশহা छब्द। आज्ञासम्यक्त्वमुक्त यदुतपरिरुचितं वीतरागाज्ञायैव । त्यक्तग्रन्थप्रपन्चं शिव परमृतपथं ध्रदधन्मोदशन्ते. ।




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