अधूरे साक्षात्कार | Adhure Sakshatkar

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Book Image : अधूरे साक्षात्कार  - Adhure Sakshatkar

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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सन्दर्भ की खोज | ७ इन सम्बन्धौ कौ विविधता का अन्वेषण आज के हिन्दी उपन्यास को एक चिक सार्थक और आवश्यक परिपेक्ष्य में रखने मे सहायक हो सकता है, इसलिए नही कि इस दृष्टि से नये हिन्दी उपन्यास ने उपलब्धि की कोई सार्थकता प्राप्त की है, बस्कि इसलिए कि वह उसके एक विशेष अनिवायें स्का की मूचित करता द । राजनौतिक-सामाजिक यथायं से साक्षात्कार की भाँति यहाँ भी हिन्दी उषन्यासकार जते किसी अस्पष्ट-सी कुष्ठा से प्रस्त है। वह किसी भी सम्बन्ध को उसकी परिपूर्णता मे, समग्रता मे, सम्पूर्ण विविधता मे नहीं देख पाता और सार्थक उपलब्धि के स्तर तक पहुँचते-पहुँचते रह जाता दै । निस्सन्देहू आज के हिन्दी उपन्यास का यह सर्वेक्षण बहुत उत्साहवर्धक नही है। वह किसी कलात्मक परिषकक्‍वता और शिखरत्व की पुष्टि नहीं करता। वास्तव मे अभी तक हिन्दी उपब्यास में व्यक्तिगत और सामाजिक जीवन भधिक-से-अधिकं समानान्तर चलने जान पडते है, मिलकर कोई समग्रता नदी बनाते । जित लेखको मे साप्राजिक जीवन की गति को समझने की सामर्थ्य है, दे प्रायः उसे व्यक्ति के आन्तरिक जीवन के साथ नही जोड पाते; और जो व्यक्ति-सन्‌ की गहराई में पैठ सकते है, उनमे सामाजिक गति का बोध बडा दुर्बल होता है। व्यक्ति और समूह अलग-अलग होकर भी कही किसी समग्र ययार्थं मे समन्वित ह, भौर परस्पर सम्बद्ध होकर भी उनका गतिविधान भिन्न प्रकार का है, इस सत्य की उपलब्धि हमारे उपन्यास साहित्य मे बहुत ही कम होती है। स्वाधीनता के बाद का हिन्दी उपन्यास मूलत विस्तारात्मक है, जीवन फी गहनता का और उसकी समग्रता का काव्यामक वक्तव्य उसमे दिरल है। अधिकश उपन्यास अनेक चित्रों के, जीवन-छण्डों के पुज मात्र हैं | बे जीवन की निरन्तरता का, प्रवहमानता का, काल में अखण्डता का आभास मात्र दे पाते हैं, समग्र अनुभूति के रूप मे उसे सप्रेपित नही करते । साथ ही हिन्दी उपन्यासकार की दृष्टि में से रोमैंटिक भावुकतां की घुन्ध अभी पूरी तरह मिरी नरी है, उसा ययार्थवाद सतौ, एक आयामी ओर दाह्य ही अधिक है और इसलिए जीवन का एकांगी चित्र ही उपस्थित कर पाता है। फिर শী इतता वहा छा सकता है कि ये उपन्यास पहले की अपेक्षा अधिक नये रूप में ध्यक्षित को प्रतिष्ठा देते हैं, साधारण व्यक्ति भें, उसके सहज जीवन के साधारण सुख-दुःख-हर्थ-विषाद मे, मानवीय गरिमा की खोज करते हैं। एक प्रकार से साधारणता की यह महँत्ता, बल्कि उसी मे विशिष्टताकी खोज, नषीन दिन्दी उपन्यास को एक सयक विशेषत्ता है। व्यक्ति के, साघारण व्यक्त के, गौरद के इस अनुसन्धान में, हिन्दी के उपस्यासकार ने यथार्थ के दोनों छोरो तक पहुँचने का यत्न किया है । एक ओर उसने मानव के यन्तरमन बी, उसके अदचेतन जीवन को, गहराई में डूबने का साइस किया है, तो दूसरी




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