पृथिवी - पुत्र | Prithivi Putra

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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पृथिवी सूच--ए्क अध्ययन নত 47 विशेष में राष्ट्रेय मद्दिमा की राप यही है कि उध युग को संस्कृति में सृतर्ण की चमक है.या घांदी या लोहे की | टिर्ए्य संदर्शन या स्वर्थयुग 6 संकृति की स्यायो विदय कै युग हैं । पुराक्रालमेन्मौपोश्चुषियो ने श्र्नेष्यान की रकि से मांत्भूमि फे जिस हर को प्रत्यक्ठ किया घा,दह प्रश्वद्ध करने का अऋष्याय अनी तक जारी है। श्रा्भी चितन से मुक्त मर्नरों लोग नए-सए सेत्रों में मादृम[मि के इृदय के नूतन हौंदिय, नवोन श्रादर्श और श्रष्ठुते रस का आविष्कार मिषा करते ६। जप प्रकार सागर के जल से মাহে ঘৃথিত্ব। ধা स्थूल स्य मकारा मे चापा, उषी प्रार्‌ रिरव में थ्यात जो ऋत दै, उसके अमूत्त' भामे को मूत्त'न्य- में अदर बरने की प्रक्रिया भराज भी जारी है। दिलीए के गोचाए्य की तर मादृभूमि के घ्यानी पुत्र उसके दद्य के पीछे चलते हैं ( था मापामिस्वन पस्मनीपिण), १८); भर उसकी प्रायधना से नेक नए बरदान भात षते ६) पट परिष उणमूल श्यरदस्य कदा भया है। उण के राय ही থু) হে শর আখ है। इसो बारण माद्भूमि के साथ तादादम्य भद ही गति ऊत्यरिषतिया ध्रष्यात्म-साधना ধা रुप है । भारत श्रिते माद्‌ भूमि बा प्रेप और अष्यपात्म-इन दोनों का यही शमत्दप है। মালুম কষা হু विश्व 6-- वित्रो का जो स्पूल रुप है. रा भी गच् কন আব ধা হাতল है। भे विक रूप में भी पा सीद॒र्ष का दर्शन नेर- हां परम लाम है थीर उसका प्रषाश एक रिग्य विभूति है। इस दृश्टि से शद बरि दिरार बता है तब उसे पिद पर प्स्येड (ইহ মি হসর্হাদশা [লাই খালী ( ब्राशारारप रएदाम, ४३ )। इए दृपित्री को विशवरूग इ६९४ए হাহা জিত বংলা ই) বর্ষ के उच्योप से लमित और शागरों री पेलला से झण॑शद मादृभति के पुष्दल सए्पर में सिफना शौदुर £ হিস परेे पें इचरू-भृषर्‌ शोभा बी वितनी मादा है -इरको दूं हरा पए्चान- श्र মাহ কালো शरीर करपय था झाशरदक ছল ই | प्राइटिक शोभा के उप के शिफ्ट ही इम ऋपिक एगिजित होते हैं,सादृटूमि दे प्रषि उतना ही फाप अपर बइला है दूपि दे स्दूल «ए दी «प थो ইপটি ই সি




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