श्री चन्द्रप्रभपुरान भाषा (छन्दोबद्ध) | Shree Chandraprabhpuran Bhasha (Chhandobaddh)

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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(५) कथा लक्षण । द्‌ पाइता चारू-अक्षेपणी कथासुजानं, विक्षेप्णी 'बहुरि पुपाने । सवेणणो तीजी सोहै, निर्वेदनी तूये घु मोहें ॥.२९॥ ` सुन अथे सु इन ए নার, খাব हेतु दिशंत। धुन स्पादवादमें जोहै, अक्षेपणी कथा जु सोहै ॥ ३० ॥ भिथ्यात दिशा सब जामें, पूरवापर विरुद्ध सु तामैं। ताको उत्पनह्नन कर, विक्षेपणी सो मन इरहै ॥ ३१ ॥ तीर्थंकर आदि महानां, पुराण पुरक उयारुपानां । वृष २ फल बरनन जामें, संवेग नीती जो नामें ॥ ३२॥ संसारमोग थित लक्षण, कारण वेराग ततश्षण । निर्वेद चतुथनि येही, ए लक्षण कथा बरेही ॥ ३३ ॥ प्रय महिमा। _ उप्प-पिथ्या कुंजर सिह मोइ पादप झुठार कर, पाप शापकों ईंदु ध्वांत अज्ञान दिवाकर । क्रोष नामक्तो मत्र मानं गिरको वज्ञोपम, माया सफरी जाल लोभ घनको सुपोन सम । জাম समान है कुगतको, स्र॒गे मुक्तिको श्रणिवर | शुभ ऐसो अथ महान यह, पढ़त सुनत आनद घर ॥ ३४॥ कवि ख्षुता। वि भडिल -चद्‌ गहै ज्‌ बाल रु पकडे नागको, चुलुउत सामर चार फे! सेर्पाजको ।नगये चढ़े जु पशु बन फल तोढहै, दाडतनी स्यौ प्रधी माषा जोददै ॥ ३५ ॥ (3 चोपाई-सज्जन हांसी करो न मोह, सोधो भ्रूल जहां कह




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