नर पशु शास्त्रार्थ मीमांसा | Nar Pashu Shastrath Mimansa

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Nar Pashu Shastrath Mimansa by सिद्धसेन जैन गोयलीय - Siddhsen Jain Goyliya

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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९ इम से न धवरावं आज सन्डे (ऽप) ^, अपने को स्कूल भी जाना नहीं है । मेहर ०-तुम इस वातकों तो मानोगे ही, कि जो किसी विप- यम बढ़ा होता है उसीकी उपमा उपभेयको दीजाती है सो सब शास्त्र पशुवोंकी उपमाओंसे भरे हुए हैं देखियेः-““पुराणेहवादि पुराणः ” ऐसा कहते हैं कि पुराणों में सबसे बड़ा और प्रमाणीक श्री-जि- नसेन॑ स्वामीकृत आदि पुराण है, लीजिए-पहिले उसीका परमाणः- ५५ कमी है मरुदेवी राणी सदा राना (नाभि)के मन बसे है, जाका ऐसनी केसी चाल और कोयल कैसे बचय हैं, जेसो चकवीकी चकपेसे प्रीति होय तैसे राणीकी राजा सों प्रीति होती भई........ पद्मपुराणम॑ सीता की सुन्दरता देखिये+- “जीती है मदकी भरी हैंसनी की चाल जिसने ओर सुन्दर हैं भोँह जिसकी अति कोमल हैं पुष्पमाछा समान भुजा जिसकी और केहरि समान हैं कटि जाकी ” ........ रावणके विषयर्म हपभ (बेल) समान कंध जिसके पुष्ट विस्ती णे वक्षस्थल जाके. दिशजकी सूँड समान ध्ना जिसकी केहरि समान कटि........ | इसी प्रकार अनेको पुराणों में कहीं गज-गामिनी है




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